बचपन में आंखों की रोशनी चली गई परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी फिर भी JNU से Upsc तक का सफर तय किया

उत्तर प्रदेश (अमरोहा) के निवासी सतेंद्र सिंह ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा में अपने परिवार का नाम रोशन किया है। उन्होंने 370वीं रैंक पर अपनी जगह बनाई है. इस परीक्षा में सफल हुए अनेक अभ्यर्थियों की अपनी-अपनी सफलता की दास्तान है, पर सतेंद्र सिंह की कहानी उनसे जुदा है. वे शायद टॉप-3 में नहीं आए, पर उनका हौसला और मेहनत किसी टॉपर से कम नहीं है. चलिए, उनके बारे में और जानते हैं।

आंखें तो सतेंद्र सिंह के पास हैं, पर देख नहीं सकते हैं. वे पूरी तरह से नेत्रहीन हैं. उनका बचपन निमोनिया की बीमारी ने छीन लिया था. उनके परिवार की हालत इतनी खराब थी कि बीमारी का वह महंगे अस्पताल में इलाज भी नहीं करवा सकते थे उनके पास कोई रास्ता नहीं था. वे खेती-बाड़ी से ही जीवन यापन करते थे. उनके लिए तो जीवन आसान नहीं था। फिर भी वे हिम्मत नहीं हारे और अमरोहा के खेतों में काम करते-करते उन्होंने 12वीं की पढ़ाई पूरी की।

Satendra Singh Ias Biography In Hindi

सतेंद्र सिंह की शिक्षा 

सतेंद्र को 12वीं पास करने के बाद बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनका हौसला टूटा नहीं. वो अपने सपनों को पूरा करने का एक मौका ढूंढ रहे थे. तभी उन्हें अपने परिवार को छोड़कर दिल्ली जाना पड़ा. वहां उन्होंने एक सरकारी इंस्टीट्यूट में जाकर ब्रेल लिपि का अध्ययन किया और अपनी योग्यता बढ़ाई. फिर उन्हें एक स्कॉलरशिप मिली जिससे वो सेंट स्टीफंस कॉलेज में प्रवेश ले सके. उन्होंने वहां से पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन करके अपने परिवार का नाम रोशन किया.

Upsc एग्जाम पास कर बने आईएएस 

जेएनयू से मास्टर्स और एमफिल-पीएचडी करने के बाद, सतेंद्र ने श्री अरबिंदो कॉलेज के राजनीति शास्त्र विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर का पद संभाला. लेकिन उनका सपना ये नहीं था, उनका लक्ष्य UPSC पास करना था. और वो भी कर दिखाया, 2018 में यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में हिस्सा लेकर उन्होंने 714वां स्थान प्राप्त किया. अभी तो वो रक्षा मंत्रालय के सहायक निदेशक के रूप में काम कर रहे हैं. लेकिन इस बार उन्हें IAS की नौकरी मिली है.

सरकारी स्कूल से ही शिक्षा पूरी हुई

सतेंद्र सिंह को अपनी कामयाबी का श्रेय दो चीजों को देते हैं. एक तो सार्वजनिक सेवाएं और दूसरा सरकार का उचित शिक्षा प्रदान करना. उन्होंने बताया कि मुझे सरकारी स्कूल में ही शिक्षा मिली है. यदि ये सरकारी स्कूल नहीं होते तो मैं आज जो हूं वो नहीं होता. इन्हीं की वजह से मुझे जेएनयू में मास्टर्स, एमफिल और पीएचडी करने का मौका मिला. उन्होंने कहा कि यह संस्था ने मेरी व्यक्तिगत उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान दिया और मेरे दृष्टिकोण को विस्तृत किया.

बचपन से ही तिरस्कार सहा 

मुझे दिव्यांग कहा गया है. मुझे बचपन से ही अनेक प्रकार की निंदा और तिरस्कार का सामना करना पड़ा, परन्तु इन संस्थानों ने मुझे ऐसी शिक्षा दी, जिसने मुझे आगे बढ़ने का साहस दिया. मुझे बताया गया कि मेरे जैसे लोगों को सार्वजनिक और सरकारी शिक्षा की बहुत आवश्यकता है, जो कि सस्ती और गुणवत्तापूर्ण हो. मुझे ऐसे ही कार्यक्षेत्र में काम करना है, जहां मैं समाज के लिए कुछ अच्छा कर सकूं।

नेत्रहीन लोगों के लिए कैसे होती है परीक्षा

लिखने में असमर्थ अभ्यर्थियों के लिए कुछ निर्देश हैं. वे या तो अपने साथ एक राइटर ला सकते हैं या अपने उत्तर को कम्प्यूटर पर रिकॉर्ड कर सकते हैं. आम तौर पर अभ्यर्थियों का यही चयन होता है कि वे राइटर का सहारा लें. राइटर की योग्यता अभ्यर्थी से नीचे होनी चाहिए. राइटर का काम होता है कि वह अभ्यर्थी को प्रश्न पढ़कर सुनाए और उसके अनुसार उत्तर लिखे. इस प्रक्रिया की जाँच यूपीएसी द्वारा की जाती है, ताकि राइटर कोई ग़लती ना करे. इसके अलावा, अंधे अभ्यर्थियों को प्रत्येक पेपर में 20 मिनट का अतिरिक्त समय दिया जाता है, जो कि सामान्य अभ्यर्थियों को नहीं मिलता है.

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