गांव से निकलकर IIM में पढ़ा किसान का बेटा अब बना IIM का ही डायरेक्टर पढ़े सफलता की पूरी कहानी

प्रतिभावान लोग अपनी क़िस्मत खुद बनाते हैं, उन्‍हें ज्यादा साधनों का सहारा नहीं चाहिए. फिर वे ही दूसरे युवाओं के लिए उदाहरण बनते हैं. हम आपको आज ऐसी ही एक कहानी सुनाने जा रहे हैं. यह कहानी है उत्‍तर प्रदेश के एक किसान के बेटे की, जिसने गांव में ही अपनी पहली पढ़ाई की, फिर आईआईएम में अध्ययन करके आखिरकार आईआईएम का ही डायरेक्‍टर बना. उनका नाम है हिमांशु राय, जो अभी आईआईएम इंदौर के डायरेक्‍टर हैं.

गांव से अपनी पढ़ाई शुरू करके आईआईएम में अध्ययन करने वाले उत्‍तर प्रदेश के एक किसान के बेटे ने आखिरकार आईआईएम का ही डायरेक्‍टर बनने का सपना पूरा किया. उनका नाम हिमांशु राय है और वे अभी आईआईएम इंदौर के डायरेक्‍टर हैं

जब आपके दिल में कुछ करने की चाह होती है, तो आप अपना लक्ष्य पाने के लिए हर कठिनाई को पार करते हैं। उत्‍तर प्रदेश के देवरिया जिले के एक नन्हे गांव कतौरा के रहने वाले हिमांशु राय की कहानी भी इसी बात का गवाह है।

हिमांशू रॉय का प्रारंभिक जीवन

हिमांशु राय का बचपन गांव में ही बीता। उनके पिताजी राजेन्‍द्र राय की खेती से जुड़ी कम आय के कारण वे आडिनेंस फैक्ट्री कानपुर में काम करने गए। हिमांशु राय याद करते हैं कि उन्‍होंने ऐसे दिन भी देखे जब वे अपने मां-बाप, भाई और चचेरे भाई-बहन के साथ एक ही कमरे में रहते थे, लेकिन उनका कुछ करने का जोश कभी कम नहीं हुआ।

हिमांशु राय की शिक्षा

उन्होंने पढ़ाई और मेहनत से अपना रास्ता बनाया। हिमांशु राय ने एनआईटी कर्नाटक से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली। फिर उन्‍हें टाटा स्‍टील जमशेदपुर में काम करने का मौका मिला, जहां उन्‍होंने 8 साल तक नौकरी की। वहां उन्‍होंने अपने काम के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी हिस्सा लिया। वहां उन्‍होंने पर्वतारोहण, क्विजिंग, थियेटर आदि में भी अपनी पहचान बनाई।

हिमांशु राय कहते हैं की उनके नाना नानी पाकिस्‍तान के एक गांव को बंटवारे में छोड़कर कानपुर में आकर बस गए थे। उनके परनाना पं. किशनलाल शर्मा संस्कृत के गुरुकुल में लड़कियों को पढ़ाते थे और पाकिस्तान के कटासराज मंदिर के पुजारी थे, जिनके प्रभाव से माताजी ने संस्कृत में बीए, बीएड, एमए, एमएड, पीएचडी और डी लिट की डिग्री हासिल कि। इसलिए उन्हें संस्कृत का ज्ञान और संस्कार वंश परंपरा भी मिली। इस कारण उनका भी शौक था पढ़ने लिखने और दर्शन, वेद और प्रकृति से जुड़े विषयों में।

CAT के लिए नौकरी छोड़ी

उनका मन एक दिन पहाड़ों की ओर चला गया और वह वहां जाकर एक किताब का आनंद लेने लगे। तभी उनके दिमाग में कैट (CAT) की परीक्षा देने का ख्याल आया। उन्होंने कैट का पेपर देने के लिए अपनी नौकरी को छोड़ दिया। हिमांशु के परिवार और रिश्तेदारों ने उन्हें बहुत बातें सुनाई कि वह नौकरी त्यागकर गलत कर रहे हैं, पर जब कैट का परिणाम निकला तो हिमांशु को आईआईएम अहमदाबाद में प्रवेश मिल गया, जहां उन्होंने इंटीग्रेटेड प्रोग्राम में पीएचडी भी पूरी की। पीएचडी के बाद वह शिक्षा क्षेत्र में चले गए और एक्‍सएलआरआई जमशेदपुर में प्रोफेसर की नौकरी शुरू की। फिर वह 10 साल तक आईआईएम लखनऊ में पढ़ाते रहे।

उन्होंने यहां थमने का नाम नहीं लिया, बल्कि उन्हें इटली की बोकोनी यूनिवर्सिटी का इंडिया कैंपस का डीन बनाया गया और वह दो साल तक वहां इस पद का निर्वहन करते रहे। फिर वह पांच साल से ज्यादा समय से आईआईएम इंदौर के डायरेक्‍टर के रूप में काम कर रहे हैं। उनका शौक योगा और वेद उपनिषदों में है।

वह जल्द ही योगा और प्राकृतिक उपचारों पर एक किताब लिखने वाले हैं। हिमांशु का कहना है कि युवाओं को अपने आप पर विश्वास करना चाहिए और अपने लक्ष्य को नजर में रखना चाहिए। तभी वह सफल हो सकते हैं।

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