मनुस्मृति के अनमोल विचार | Manusmriti Quotes in Hindi

manusmriti quotes in hindi

मनुस्मृति के अनमोल विचार | Manusmriti Quotes in Hindi

● देश, धर्म, शील व संस्कृति की हिंसा करने वाले को मारने में कोई पाप नहीं है

– मनुस्मृति

● गृहस्थाश्रम के आश्रम ही अन्य तीन आश्रमों के पालन-पोषण आदि की व्यवस्था की जाती है। इसलिए गृहस्थाश्रम सबसे बड़ा आश्रम है।

मनुस्मृति

● शरीर जल से साफ होता है, मन सत्य से, बुद्धि ज्ञान से तथा आत्मा धर्म से साफ होती है।

– मनुस्मृति

● मनुष्यों को ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद के अतिरिक्त अन्य विविध मंत्रों को जानना चाहिए। ये जीवों के लिए कल्याणपरक होते हैं। जो इन तीन वेदों को भली-भांति जानता है, वही वेदवेत्ता कहलाता है।

– मनुस्मृति

● उचित रीति से स्त्री की रक्षा करने से अपने कुल, संतान, आत्मा व धर्म की रक्षा होती है।

– मनुस्मृति

● स्त्रियाँ सन्तान को जन्म देती हैं। वे घर का सौभाग्य हैं, वे पूजा के योग्य हैं, वे घर की चिराग (गृह दीप्ति) हैं।

– मनुस्मृति

● दान लेने का पात्र होने पर भी बार-बार दान न लें क्योंकि उससे ब्रह्म तेज नष्ट हो जाता है।

– मनुस्मृति

मनुष्य वेदों व स्मृतियों में कहे गये धर्म का सेवन करते हुए संसार में निर्मल कीर्ति प्राप्त करता है तथा मृत्यु के पश्चात् परलोक में परमानन्द को अधिगत कर लेता है।

– मनुस्मृति

● जो द्विज आलस्य छोड़कर प्रतिदिन प्रणय और व्यहतियों के साथ गायत्री – महामन्त्र का तीन वर्षपर्यन्त जप करता है , वह इस मन्त्र के प्रभाव से अपना गायत्री मन्त्रमय परमात्मा के अनुग्रह से आकाशरूप होकर सच्चिदानन्दस्वरूप पर ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है।

– मनुस्मृति

● प्रात:काल उठ कर राजा तीनों वेदों में कुशल वृद्ध विद्वान ब्राह्मणों की सेवा में उपस्थित हो और उनके निर्देशों के अनुसार राज्य का कार्य संचालन करें।

– मनुस्मृति

● अध्ययन नहीं करने से, आचार का पालन नहीं करने से, आलस्य और अन्य दोषों के कारण असमय मृत्यु होती है।

– मनुस्मृति

● ब्रह्मचारी को चाहिए कि अखण्डित ब्रह्मचर्य तथा अपनी कुल परम्परा का पालन करते हुए तीनों वेदों अथवा दो वेदों या एक वेद का पूर्ण अध्ययन समाप्त कर गृहस्थाश्रम में प्रवेश करे।

– मनुस्मृति

● मनु ने जिन सम्पूर्ण चारों वर्गों के गुणस्वभावादि धर्मों का उल्लेख किया है। वे सब वेदों में कहे गये है, क्योंकि भगवान मनु समस्त वेदों के अर्थ ज्ञाता है।

– मनुस्मृति

● जहाँ सब एक हैं, वहाँ सब कुछ अपने आप खिंच कर चला आता है। एकता सर्वदात्री है।

– मनुस्मृति

● हाथ के अंगूठे के पास ब्राह्म तीर्थ , कनिष्ठिका अंगुली के मूल के पास ‘ प्रजापति ‘ तीर्थ , अंगुलियों के आगे ‘ दैवतीर्थ ‘ और अंगूठे तथा प्रदेशिनी ( तर्जनी ) अंगुली के मध्य पितृतीर्थ होता है ।

– मनुस्मृति

● जिस कुल या परिवार में स्त्रियाँ कष्ट प्राप्त करती हैं, उन्हें पीड़ित किया जाता है, वह कुल शीघ्र नष्ट हो जाता है। जहाँ वे कष्ट या दुख को प्राप्त नहीं होती, वह कुल, परिवार सदा वृद्धि को प्राप्त करता है।

– मनुस्मृति

● सब दानों में ब्रह्म (विद्या) का दान सबसे श्रेष्ठ है।

– मनुस्मृति

● जो कोई विद्वान द्विज धर्म की मूलाधार श्रुतियों एवं स्मृतियों की निन्दा या अपमान करे तो सत्पुरुषों को उस वेद निन्दक अधम व्यक्ति को समस्त श्रेष्ठ कर्मों से अलग कर देना चाहिए।

– मनुस्मृति

● अध्ययन, तप, ज्ञान पवित्रता, इन्द्रिय निग्रह और ‘आत्म-चिंतन ‘- ये सब सात्त्विक गुण के लक्षण हैं।

– मनुस्मृति

● बिना हिंसा के मांस नहीं मिलता, हिंसा पाप है। अत: मांस खाना भी पाप है।

– मनुस्मृति

● मन अपने गुणों के प्रभाव से ग्यारहवीं उभयात्मक (दोनों ही) अर्थात् ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय भी है । इसीलिए मन के जीत लेने पर ये दोनों ज्ञान व कर्मेन्द्रियाँ स्वमेव विजित हो जाती है।

– मनुस्मृति

● पति-पत्नी को इस विधि से जीवन व्यतीत करना चाहिए कि जिसमें परस्पर मरणपर्यन्त वियोग न हो।

– मनुस्मृति

● सन्तानों को जन्म देना, जन्मे हुओं का पालन-पोषण – ये महत्तम कार्य नारी के ही हैं। दैनिक लोकव्यवहार रूपी कार्यों का प्रत्यक्ष मुख्य आधार नारी ही है।

– मनुस्मृति

● न्याययुत दंड का नाम ‘राजा’ और ‘धर्म’ है। यदि दण्ड नहीं तो राजा का कोई औचित्य नहीं। यदि दण्ड नहीं तो धर्म का भी कोई आधार नहीं।

– मनुस्मृति

● क्रूर स्वभाव का परित्याग सबसे बड़ा धर्म है।

– मनुस्मृति

● किसी को जूठा भोजन नहीं देना चाहिए। प्रातः और सायंकाल के भोजन के अतिरिक्त बीच में भोजन नहीं करना चाहिए अत्यधिक भोजन नहीं लेना चाहिए। कहीं भी जूठे मुँह नहीं जाना चाहिए।

– मनुस्मृति

● शुद्धाचरण से, चरित्रवान बनने से, स्त्री. पुरुष निश्चित रूप से दीर्घायु प्राप्त करते हैं।

– मनुस्मृति

● इस जगत् में कभी भी बिना इच्छा के कोई भी जया या कर्म सम्पन्न होता दिखाई नहीं देता है , क्योंकि मनुष्य जो जो कर्म करता है , वह कर्म उसकी इच्छा की ही चेष्टा का परिणाम है – ऐसा मानना चाहिये।

– मनुस्मृति

● यह निश्चय जानिए कि जैसे अग्नि में ईंधन और घी डालने से अग्नि की ज्वाला और अधिक बढ़ जाती है, वैसे ही कामों के उपभोग से कभी भी काम शांत नहीं होता है बल्कि निरंतर बढ़ता ही जाता है।

– मनुस्मृति

● चोरी करने वाले के हाथ काट दो। दुष्ट कर्म करने वाले की आँख निकाल दो। व्यभिचारी पुरुष को गर्म-गर्म विशाल तवे पर डाल कर मार दो।

– मनुस्मृति

● दूषित हृदय वाले व्यक्ति का वेदाध्ययन , त्याग , यज्ञादि का अनुष्ठान , यम – नियमों का पालन , अभ्यास ये कभी सिद्धि प्राप्त नहीं करते हैं।

– मनुस्मृति

● कन्या विवाह योग्य होने पर भी मरणपर्यन्त घर में बैठी रहे परंतु उस कन्या का कभी गुणहीन पुरुष को दान न करें।

– मनुस्मृति

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