अंधी भिखारिन हिंदी कहानी – Hindi moral story on rich and poor

अंधी भिखारिन रबिन्द्रनाथ टैगोर हिंदी कहानी – Hindi moral story on rich and poor

अंधी भिखारिन रबिन्द्रनाथ टैगोर हिंदी कहानी - Hindi moral story on rich and poor

Andhi Bhikharin Hindi Kahani

अंधी भिखारिन हर रोज मंदिर के दरवाजे पर जाकर खड़ी होती दर्शन करने वाले मंदिर से जब बाहर निकलते हैं तो वह अपना हाथ फैला देती और नम्रता से कहती

“बाबूजी अंधी पर दया हो जाए”


वह जानती थी कि मंदिर में आने वाले लोग सहृदय दयालु होते हैं उसका यह अनुमान गलत नहीं था आने जाने वाले लोग उसके हाथ में दो चार पैसे तो रख ही देते थे और अंधी उनको दुआएं देती थी। सुबह से शाम तक वह इसी तरह हाथ फैलाए खड़ी रहती उसके बाद मन ही मन भगवान को प्रणाम करती और अपनी लाठी के सहारे अपनी झोपड़ी में चली जाती।  एक दिन जब वह शाम को अपनी झोपड़ी की तरफ जा रही थी तब झोपड़ी के करीब आते ही एक 10 साल का लड़का उसके करीब आया और उससे लिपट गया अंधी ने बहुत प्यार से उसके माथे पर हाथ फेरा, बच्चा कौन है, किसका है, कहां से आया इस बात का उसे अंदाजा नहीं था।


5 वर्ष हुए आस पड़ोस वालों ने उसे अकेला देखा था इन्हीं दिनों एक दिन शाम के समय लोगों ने उसकी गोद में एक बच्चा देखा वह रो रहा था और अंधी उसका मुख चूम चूम के उसे चुप कराने में लगी थी यह घटना कोई असाधारण नहीं थी और किसी ने भी नहीं पूछा कि यह बच्चा किसका है उसी दिन से वह बच्चा अंधी के पास था और बहुत खुश था उसको वह अपने से बहुत अच्छा खिलाती ओर पहनाती थी।


अंधी ने अपनी झोपड़ी में एक हांडी गाड़ रखी थी शाम के समय बाद जो भी वह मांग कर लाती कर लाती उस हांडी में वह डाल देती और उसे किसी वस्तु से ढक देती इसलिए कि कोई दूसरा व्यक्ति उसे देख ना ले। उसे खाने के लिए अन्न बहुत मिल जाता था तो उसी से अपना काम चलाती थी। पहले बच्चे को पेट भर खिलाती फिर वह खुद खाती रात को बच्चे को अपने सीने से लगाकर वहीं सोती रहती फिर सुबह उस बच्चे को खिला पिला कर फिर वह मंदिर की तरफ चल देती।


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काशी में सेठ बनारसीदास काफी प्रसिद्ध व्यक्ति हैं बच्चा बच्चा उनकी कोठी से परिचित है बहुत बड़े देशभक्त और धर्म धर्मात्मा हैं उनकी कोठी पर हर समय कर्ज मांगने वालों की भीड़ लगी रहती लेकिन ऐसे व्यक्ति भी उनके पास आते थे जो अपनी पूंजी सेठ जी के यहां रखते थे। सैकड़ों भिखारी अपनी जमा पूंजी इन्हीं सेठ जी के यहां रख जाते। अंधी को भी यह बात पता थी लेकिन पता नहीं वह अभी तक अपनी जमा पूंजी यहां पर क्यों नहीं रखती थी उसके पास अब तक लगभग काफी रुपए हो चुके थे हांडी लगभग पूरी भर गई थी और उसे डर था कि कोई चुरा ना ले।


एक दिन शाम के समय वह अपनी हांडी को अपने आंचल में छुपा कर सेठ जी के यहां गई सेठ जी बहीखाते के पन्ने उलट रहे थे उन्होंने पूछा,

“क्या है बुढ़िया?”


अंधी ने अपनी हांडी उनके आगे खिसका दी और डरते डरते बोली;


“सेठ जी इसे अपने पास जमा कर लो मैं अंधी अपाहिज कहां रखती फिरूँगी ”


सेठ जी ने हांडी की ओर देखकर कहा,


“क्या है इसमें?”


अंधी ने कहा;


“भीख मांग मांग कर अपने बच्चे के लिए दो चार पैसे जमा किये हैं अपने पास रखने से डरती हूं कृपया इन्हें अपनी कोठी में रख ले”


सेठ जी ने अपने मुनीम की ओर संकेत करते हुए कहा,

फिर बुढ़िया से पूछा – “तेरा नाम क्या है?”


अंधी ने अपना नाम बताया, मुनीम ने नकदी गिन कर उनके नाम से जमा कर ली और सेठ जी को आशीर्वाद देते हुए अंधी अपनी झोपड़ी की तरफ चल दी। 2 साल बहुत खुशी से बीते फिर इसके बाद एक दिन उसके लड़के की तबीयत खराब हो गई।


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अंधी ने बहुत दवाई करवाई, झाड़-फूंक की, और कई टोटके भी करवाए लेकिन उससे भी काम नही बना सारी कोशिशें नाकाम रही लड़के की तबीयत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती ही रही अंधी का दिल टूट गया साहस ने जवाब दे दिया और वह निराश हो गई लेकिन फिर ध्यान आया क्या पता डॉक्टर के इलाज से से सही हो जाए इस विचार के आते ही वह गिरती पड़ती सेठ जी की कोठी पर पहुंची सेठ जी उपस्थित थे और उसने कहा;


“सेठ जी मेरी पूंजी में से मुझे 10 – 5 रुपये मिल जाएं तो बड़ी कृपा हो मेरा बच्चा मर रहा है सेठ जी उसे डॉक्टर को दिखाऊंगी”


सेठ ने कहा – “कैसी जमा पूंजी?.. कैसे रुपए?.. मेरे पास किसी के रुपए नहीं हैं?”


अंधी ने कहा – “2 वर्ष हुए मैंने आपके पास अपनी पूंजी रख कर गई थी सेठ जी दे दीजिए बड़ी दया होगी”


सेठ ने मुनीम की ओर रहस्यमई दृष्टि से देखते हुए कहा


“मुनीम जी जरा देखना तो इसके नाम से कोई पूंजी जमा है क्या.. तेरा नाम क्या है री?”


अब अंधी की जान में जान आई पहला उत्तर सुनकर उसे लगा कि सेठ बेईमान है लेकिन अब सोचने लगी कि हो सकता है उसे ध्यान ना रहा हो ऐसा धर्मात्मा व्यक्ति भला कभी झूठ बोल सकता है उसने अपना नाम बताया फिर मुनीम ने पन्ने उलट पलट पलट कर देखा फिर कहा;


“नहीं तो इस नाम से तो एक भी पाई जमा नहीं है”


अंधी को तो जैसे जोर का झटका लगा वह वहीं जमकर बैठ गई और रो-रो कर कहने लगी


“सेठ जी परमात्मा के नाम पर धर्म के नाम पर कुछ दे दीजिए सेठ जी मेरा बच्चा जी जाएगा मैं जीवन भर आपके गुण गाऊँगी की सेठ जी”


लेकिन सेठ ने क्रोध में आकर कहा – “जाती है या नौकर को बुलाऊँ” 


अंधी लाठी टेककर खड़ी हुई और सेठ से बोली – “अच्छा भगवान तुम्हें बहुत दे” और अपनी झोपड़ी की ओर चल दी।


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बच्चे की तबीयत बिगड़ती ही गई दवा कुछ हुई नहीं तो फायदा कैसे होता और 1 दिन उसकी तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गई प्राण के लाले पड़ने लगे उसके जीवन से अंधी भी निराश हो गई सेठ जी पर उसे रह-रहकर गुस्सा आने लगा और सोचने लगी कि इतना धनी व्यक्ति है 2 – 4  ऊपर दे देता तो क्या चला जाता मैं उससे कोई दान तो नहीं मांग रही थी अपने ही जमा पैसे लेने गई थी सेठ जी से उसे घृणा हो गई थी।


बैठे-बैठे उसे कुछ ध्यान आया और गिरते पड़ते बच्चे को लेकर सेठ जी की कोठी पर पहुंची ओर उनके दरवाजे पर धरना देकर बैठ गई बच्चे का शरीर बुखार से तेज गर्म हो रहा था एक नौकर किसी काम से बाहर आया तो अंधी को बैठा देखकर उसने सेठ जी को सूचना दी तो सेठ जी ने उससे कहा कि उसे भगा दो फिर नौकर ने अंधी से जाने को कहा लेकिन वह उस जगह से हिली तक नहीं मारने का डर भी दिखाया लेकिन अंधी तो टस से मस नहीं हुई फिर उसने सेठ से अंदर जाकर कहा वह नहीं टलती।


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फिर सेठ जी स्वयं बाहर आए और उसे देखते ही पहचान गए और उन्होंने जब उस बच्चे को देखा तो वह बहुत आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि उस बच्चे की शक्ल सूरत उनके बेटे मोहन से बहुत मिलती है 7 वर्ष हुए मोहन किसी मेले में खो गया था बहुत ढूंढा पर वह नहीं मिला फिर उन्हें ध्यान आया है कि मोहन के जांघ पर एक लाल रंग का निशान था अंधी की गोद में बैठे बच्चे की जांघ देखी तो वह निशान अवश्य था लेकिन पहले से कुछ बड़ा था उन्हें यकीन हो गया कि वह बच्चा उन्हीं का है तुरंत उन्होंने उस बच्चे को छीन कर अपने कलेजे से लगा लिया।


उसका शरीर बुखार से तप रहा था नौकर को डॉक्टर लाने के लिए भेजा और स्वयं मकान के अंदर चले गए अंधी बाहर खड़ी रही और चिल्लाने लगी;


“मेरे बच्चे को मत ले जाओ… मेरे बच्चे को मत ले जाओ… मेरे पैसे तो हजम कर गए अब क्या मेरा बच्चा भी छीन लोगे मुझसे”


सेठ जी बहुत चिंतित हो गए और बोले अंधी यह बच्चा मेरा है यही एक बच्चा है जो 7 साल पहले कहीं खो गया था अब मिला है तो अब इसे कहीं नहीं जाने दूंगा लाख प्रयत्न करके इसकी जान बचा लूंगा।


अंधी जोर से हंसने लगी “तुम्हारा बच्चा.. लाख प्रयत्न करके भी उसे बचाओगे!! मेरा बच्चा होता तो उसे मर जाने देते.. क्यों, यह भी कोई न्याय है? इतने दिनों तक खून पसीना एक करके उसे पाला अब उसको अपने हाथों से नहीं जाने दूंगी”


सेठ जी की अजीब दशा थी उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कुछ देर वहीं खड़े रहे फिर वह मकान के अंदर चले गए। अंधी भी अपनी झोपड़ी की तरफ चली गई।


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दूसरे दिन पता नहीं क्या भगवान की कृपा हुई या डॉक्टर की दवा का असर हो गया मोहन का बुखार एकदम उतर गया था जब उसने आंख खोली तो सबसे पहले उसकी जुबान से शब्द निकला था मां.. चारों तरफ आसपास देखकर जब उसे अपनी मां नहीं दिखी तो उसने अपनी आंख फिर बंद कर ली और उसका बुखार अचानक बढ़ने लगा वह बस एक ही रट लगाए रखा था मां.. मां..!!


डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया सेठ जी के हाथ पांव फूल गए उन्हें चारों तरफ अंधेरा दिखाई देने लगा क्या करूं एक ही बच्चा इतने दिनों बाद मिला अब उसे मौत अपने मुंह में दबा रही है।


फिर उन्हें अंधी का ध्यान आया तो उन्होंने अपनी पत्नी को बाहर भेजा और कहा की देख कर आए वह अंधी बाहर बैठी है या नहीं लेकिन अंधी वहां नहीं थी सेठ तुरंत अंधी की घर की तरफ चल दिए तो उन्होंने देखा कि बिना दरवाजे की झोपड़ी थी और अंधी फटे पुराने टाट पर सोई हुई है उसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे सेठ ने जब उसे हिलाया तो पता चला कि उसका शरीर भी बुखार से तप रहा है।


सेठ ने कहा “बुढ़िया तेरा बच्चा मर रहा है डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया वह रह-रहकर तेरा ही नाम रट रहा है अब तू ही उसके प्राण बचा सकती है चल मेरे साथ और मेरे.. नहीं नहीं.. अपने बच्चे की जान बचा ले”

अंधी ने कहा;

“मर रहा है तो मर जाने दो मैं भी तो मर रही हूं वैसे भी तो वह सुख में नहीं हम दोनों मां-बेटे स्वर्ग में फिर मिलेंगे मैं वहां हर दिन उसकी अच्छे से सेवा चाकरी करूंगी”


सेठ जी रो दिए आज तक उन्होंने किसी के सामने सर नहीं झुकाया था और आज उन्होंने अंधी के पांव पकड़ लिए और रो-रोकर कहने लगे।


“ममता की लाज रख लो बुढ़िया आखिर तुम भी उसकी मां हो चलो मेरे साथ वह तुम्हारे जाने से ही वह बचेगा”


ममता शब्द ने अंधी को अंदर से झकझोर दिया उसने तुरंत कहा “चलो जल्दी चलो”


सेठ जी उसे सहारा देकर बाहर लाए और अपनी गाड़ी में बैठाया। उस समय अंधी और सेठ दोनों की एक ही दशा थी वह चाहते थे वह जल्द से जल्द अपने बच्चे के पास पहुंच जाएं कोठी आ गई सेठ ने सहारा देकर अंधी को उतारा और अंदर ले गए अंदर जाकर अंधी ने मोहन के माथे पर सर पर हाथ फेरा तो उसे अहसास हुआ कि यह तो उसकी मां का हाथ है उसने तुरंत अपनी आंख खोली और उसे अपने समीप देखकर उसे बहुत अच्छा लगा और वह एकदम बोल पड़ा


“मां.. मां.. तुम आ गई”


अंधी मोहन के सिरहाने बैठ गई और उसका सिर अपनी गोद में रख लिया उसे बहुत ही अच्छा लगा और देखते ही देखते मोहन उसकी गोद में तुरंत सो गया दूसरे दिन से मोहन की तबीयत ठीक होने लगी और 10 से 15 दिन में वह एकदम ठीक हो गया।


जो काम हकीमों के जोशांदे, वेदों की पुड़िया और डॉक्टरों के टिंचर ना कर सके वह काम अंधी की प्यार भरी सेवा ने कर दिया।


मोहन की पूरी तरह ठीक हो जाने के बाद अंधी ने विदा मांगी सेठ जी ने अंधी से बहुत विनती की कि वह यहीं रुक जाए और उन्ही के पास रह जाए परंतु वह सहमत नहीं हुई जब वह जाने लगी तो सेठ जी ने रुपयों की एक थैली उसके हाथ में दे दी तो अंधी ने पूछा कि आखिर इसमें क्या है?


सेठ ने कहा कि “इसमें तुम्हारी धरोहर है बुढ़िया, मेरा वह अपराध…”


अंधी ने बात काट कर कहा सेठ जी मैंने तो यह रुपए तुम्हारे मोहन के लिए इकट्ठे किए थे उसी को दे देना अंधी ने थैली वही रख दी और लाठी टेकते हुए चल दी बाहर निकलते समय उसने फिर एक बार उस कोठी की और देखा और उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।


उस वक्त वह भिखारिन होते हुए भी उस सेठ से महान थी उस समय सेठ याचक था और वह दाता थी।


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