आचार्य देवप्रिया दीदी जी की जीवनी | Sadhvi devpriya ji biography in hindi
कौन है आचार्य देव प्रिया दीदी
आचार्य देव प्रिया दीदी कई वर्षों कई सालों से सेवा कार्यों का सफलतापूर्वक कार्यान्वयन कर रहीं हैं। आचार्य साध्वी देवप्रिया जी दिल्ली पतंजलि विश्वविद्यालय की दर्शन शास्त्र विभाग की अध्यक्ष हैं। तथा डॉ. आचार्य साध्वी देवप्रिया ने दिव्य शरीर में दिव्य जीवन विषय पर अपने दिव्य अनुभव व उद्बोधन से सभी विद्यार्थियों, आचार्यों एवं योग मार्ग के साधकों को अभिप्रेरित किया है।
प्रारंभिक जीवन और जीवन चरित्र
बचपन से ही इन्हें भक्ति भाव में काफी रूचि थी बाल्यकाल से ही इन्हें श्रीमद्भागवत गीता, उपनिषद, कर्मकांड, श्रीरामचरितमानस भक्ति सूत्र का भी अध्ययन किया। इन्हें बचपन में कविताएं लिखने का भी बहुत शौक था शुरुआत से ही इनका जुड़ाव अध्यात्म और योग की दुनिया से बहुत गहरा रहा है, योग में इनकी गहरी रुचि रही है इसी के अनुसार इन्होंने योग में ही अपना करियर बनाया कई सालों से यह अपने शिविरों में लोगों को योग के बारे में बताती आ रही है लोगों को सही ढंग से योग करवाना और योग से जुड़े कुछ चमत्कारी फायदे भी बताती हैं।
आचार्य देवप्रिया दीदी कहती हैं कि अधिकतर हम भूतकाल और भविष्य की पुरानी और पराई बातों में ही उलझे रहते हैं और गंगा के तट पर खड़े होकर भी प्यासे ही रह जाते हैं। सुबह के समय को हमारे ऋषि मुनियों नें कितना अच्छा नाम दिया है “ब्रह्मा मुहूर्त” ब्रह्मा का मतलब होता है जिसमें केवल ब्रह्मा, वेद, ऋषि मुनि और ब्रह्मा के जिज्ञासु साधक ही सक्रिय होते हैं बाकी सोए रहते हैं। उसको ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। इस समय पूरे देश में मंदिरों में मस्जिदों में गिरजाघरों में आश्रमों में अनेक पुण्य आत्माएं ईश्वर की स्तुति प्रार्थना और उपासना करती हैं। भक्ति भाव से ध्यान भजन वंदन करते हैं पूरी प्रकृति ईश्वर की उपासना में लीन होती है और उसके साथ ही हम सब भाई बहन हिमालय की कोटी में, वह हिमालय जहां ऋषि-मुनियों ने तप किया है पवित्र पावनी मां गंगा के तट पर ऐसे पवन धाम पर योगाभ्यास करने के लिए उपस्थित होते हैं।
देखा जाए तो जीवन सद्विचार से शुरू होता है और सदाचरण पर खत्म हो जाता है जैसी हमारी भावनाएं होती हैं वैसे हमारे विचार होते हैं वैसा हम व्यवहार और वाणी से आचरण करते हैं और जैसा हम अपने शरीर से इंद्रियों से आचरण करते हैं वैसा हमारा जीवन बन जाता है और वैसे ही संस्कार बनकर जीवन की बन जाता है।