श्री अरविंद घोष के 35+ अनमोल राजनीतिक और शैक्षिक विचार | Sri Aurobindo Ghosh Quotes In Hindi

श्री अरविंद घोष के 35+ अनमोल राजनीतिक और शैक्षिक विचार | Sri Aurobindo Ghosh Quotes In Hindi


श्री अरविंद घोष के 35+ अनमोल राजनीतिक और शैक्षिक विचार | Sri Aurobindo Ghosh Quotes In Hindi

श्री अरविंद घोष के 35+ अनमोल राजनीतिक और शैक्षिक विचार | Sri Aurobindo Ghosh Quotes In Hindi


1.) यदि कोई धर्म सार्वभौमिक नहीं है, तो वह शाश्वत नहीं हो सकता है। एक संकीर्ण धर्म, एक सांप्रदायिक धर्म, एक विशेष धर्म केवल सीमित समय और सीमित उद्देश्य के लिए रह सकता है।


– अरविंद घोष


2.) यदि तुम किसी का चरित्र जानना चाहते हो तो उसके महान कार्य न देखो, उसके जीवन के साधारण कार्यों का सूक्ष्म निरीक्षण करो।


श्री अरविंद घोष के 35+ अनमोल राजनीतिक और शैक्षिक विचार | Sri Aurobindo Ghosh Quotes In Hindi


– अरविंद घोष


3.) लक्ष्यहीन जीवन हमेशा एक परेशान जीवन होता है। प्रत्येक व्यक्ति का एक उद्देश्य होना चाहिए। लेकिन यह मत भूलो कि आपके उद्देश्य की गुणवत्ता आपके जीवन की गुणवत्ता पर निर्भर करेगी। आपका उद्देश्य उच्च और व्यापक, उदार और उदासीन होना चाहिए; यह आपके जीवन को अपने और दूसरों के लिए अनमोल बना देगा। जो भी आपके आदर्श हैं, यह पूरी तरह से महसूस नहीं किया जा सकता है जब तक कि आप अपने आप में पूर्णता का एहसास नहीं करते हैं।


– अरविंद घोष


4.) जो ईश्वर से प्रेम करता है उसे अपने प्रेम की वस्तु हर जगह दिखाई देती हैं।


– अरविंद घोष


5.) पढो, लिखो, कर्म करो, आगे बढो, कष्ट सहन करो, एकमात्र मातृभूमि के लिए, माँ की सेवा के लिए।


– अरविंद घोष


6.) योग का अभ्यास हमें अपने स्वयं की असाधारण जटिलता के साथ सामना कराता है।


– अरविंद घोष


7.) आध्यात्मिकता वास्तव में भारतीय मन की प्रमुख कुंजी है; अनंत की भावना यहां जन्मजात है।


– अरविंद घोष


8.) आध्यात्मिकता वास्तव में भारतीय मन की प्रमुख कुंजी है; अनंत की भावना यहां जन्मजात है।


– अरविंद घोष


9.) जिसमें त्याग की मात्रा, जितने अंश में हो, वह व्यक्ति उतने ही अंश में हो, वह व्यक्ति उतने ही अंश में पशुत्व से ऊपर है।


– अरविंद घोष


10.) मानव प्रेम की सर्वोच्च स्थिति है, दो शरीरों में एक आत्मा।


– अरविंद घोष


11.) गुण कोई किसी को नहीं सिखा सकता. दूसरे के गुण लेने या सीखने की जब भूख मन में जागती है, तो गुण अपने आप सीख लिए जाते हैं।


– अरविंद घोष


12.) मेरा ईश्वर प्रेम है और यह मधुरता से सबको प्रभावित करता हैं।


– अरविंद घोष


13.) हमारा वास्तविक शत्रु कोई बाहरी ताकत नहीं है, बल्कि हमारी खुद की कमजोरियो का रोना, हमारी कायरता, हमारा स्वार्थ, हमारा पाखंड, हमारा पूर्वाग्रह है।


– अरविंद घोष


14.) अपना अंदरूनी जीवन जियो; यह बाहरी घटनाओं से डगमगाना नहीं चाहिए।


– अरविंद घोष


15.) वैराग्य ही प्रभुत्व की शुरुआत है।


– अरविंद घोष


16.) तुम लोग जड़ पदार्थ, मैदान, खेत, वन-पर्वत आदि को ही स्वदेश कहते हो, परन्तु मैं इसे ‘माँ’ कहता हूँ।


– अरविंद घोष


17.) जिसे हम हिंदू धर्म कहते हैं, वह वास्तव में सनातन धर्म है क्योंकि यह अन्य सभी को गले लगाता है।


– अरविंद घोष


18.) एक शांत दिमाग का मतलब यह नहीं कि कोई विचार या मानसिक गति बिल्कुल नहीं होगी। यह केवल सतही होंगे। आप अपने सच्चे होने का एहसास करेंगे। आप इनसे अलग रहेंगे और उनका अवलोकन करेंगे।


– अरविंद घोष


19.) कोई किसी को सिखा नही सकता हैं, जब खुद में इच्छा जागती हैं तभी कोई सीख पाता हैं।


– अरविंद घोष


20.) ऐसा कुछ भी नहीं है जो मन की चंचलता और विचार-मुक्त चित्त में बेहतर ढंग से न किया जा सके। जब मन स्थिर होता है, तब सत्य को मौन की शुद्धता में सुनने का मौका मिलता है।


– अरविंद घोष



21.) शाश्वत सत्य, किसी भी धर्म या पंथ या शास्त्र या विचार या दर्शन इन सब से बड़ा है।


– अरविंद घोष


22.) धन को विलास के लिए खर्च करना एक प्रकार से चोरी होगी. वह धन असहायों और जरूरतमन्दों के लिए है।


– अरविंद घोष


23.) भारत की एकता, स्वाधीनता और उन्नति सहज साध्य हो जाएगी, भाषा की रक्षा करते हुए साधारण भाषा के रूप में हिन्दी भाषा को ग्रहण कर उस बाधा को दूर करेंगें।


– अरविंद घोष


24.) सच्चा ज्ञान सोचने से नहीं मिलता है। यह वही है जो तुम हो; यह वही है जो आप बन जाते हैं।


– अरविंद घोष


अरविंद घोष के राजनीतिक विचार


25.) निष्क्रिय प्रतिरोध अहिंसात्मक होना चाहिए लेकिन अगर सरकार निर्दयी हो जाये तो हिंसा का प्रयोग करने से भी नहीं चूकना चाहिए क्योंकि अत्याचारों को सहना कायरता हैलेकिन उनका मानना था कि हिंसा प्रयोग अंतिम मार्ग है और हिंसा का रूप ऐसा न हो जिससे किसी को हानि हो बल्कि आत्मरक्षा के रूप में ही इसका प्रयोग किया जाना


– अरविंद घोष


26.) स्वतंत्र सार्वजानिक सभा करने का अधिकार-यह अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का पूरक है।


– अरविंद घोष


27.) संगठन निर्माण का अधिकार व्यक्ति अकेला विकास नहीं कर सकता बल्कि समूह में रहकर ही उसे अपना विकास करना होता है. इसलिए एक स्वतंत्र राष्ट्र के लिए यह अधिकार आवश्यक है।


– अरविंद घोष


28.) व्यक्तिगत स्वतंत्रता सभी प्रकार की स्वतंत्रता की पूर्व शर्त है लेकिन विदेशी शासन की मौजूदगी में इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता और चूँकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से ही व्यक्ति में राष्ट्रीय चेतना का विकास होता है।


– अरविंद घोष


29.) मनुष्य चाहे कितने भी तरह से भिन्न न हो परन्तु राष्ट्र प्रेम उसे एकता के सूत्र में बाँध देता है. वे कहते हैं कि “राष्ट्रवाद ही राष्ट्र की दैवीय एकता है”।


– अरविंद घोष


अरविंद घोष के शैक्षिक विचार 


30.) शिक्षा का मूलभूत आधार ब्रह्मचर्य होना चाहिए।



– अरविंद घोष


31.) विद्यालय वातावरण बच्चे के शारीरिक तथा आध्यात्मिक विकास में सहायक होना चाहिए। 


– अरविंद घोष


32.) बच्चे को सभी मानसिक योग्यताओं तथा मनोविज्ञान के अनुरूप प्रदान की जानी चाहिए।


– अरविंद घोष


33.) पाठ्यचर्या रूचिकर होनी चाहिए तथा इसे बच्चे को अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।


– अरविंद घोष


34.) शिक्षा के माध्यम से इन्द्रियों का प्रशिक्षण तथा अंत:करण का विकास होना चाहिए।


– अरविंद घोष


35.) शिक्षक को विद्यार्थियों पर अपने विचारों को नहीं थोपना चाहिए बल्कि उन्हें संपूर्ण मानव बनने के लिए सहायता एवं मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। उनके अनुसार, शिक्षक एक सुविधा या सहायता प्रदाता तथा पथ प्रदर्शक होता है।


– अरविंद घोष


36.) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए।


– अरविंद घोष


37.) शिक्षा का लक्ष्य अध्यात्म की प्राप्ति होनी चाहिए।


– अरविंद घोष