पंडित दीनदयाल उपाध्याय के 26 अनमोल विचार | Pandit Deendayal Upadhyaya quotes in hindi

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के 26 अनमोल विचार | Pandit Deendayal Upadhyaya quotes in hindi


पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अनमोल विचार | Pandit Deendayal Upadhyaya quotes in hindi

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अनमोल विचार | Pandit Deendayal Upadhyaya quotes in hindi


पंडित दीनदयाल उपाध्याय ( जन्म: 25 सितम्बर 1916–11 फरवरी 1968) दीनदयाल उपाध्याय भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद नामक विचारधारा दी। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिंतक (चिन्तक) और संगठनकर्ता थे। उन्होंने राजनीति के अलावा भारतीय साहित्य में भी योगदान दिया। उनके द्वारा सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य व चाणक्य पर आधारित नाटक ‘सम्राट चन्द्रगुप्त’ बहुत पसंद किया गया।


पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर अनमोल विचार | Pandit Deendayal Upadhyaya jayanti quotes in hindi


●•● एक देश लोगों का समूह है जो ‘एक लक्ष्य ’,‘एक आदर्श ’, एक मिशन ‘ के साथ जीते हैं, और धरती के एक टुकड़े को मात्रभूमि के रूप में देखते हैं। यदि आदर्श या मात्रभूमि – इन दोनों में से एक भी नहीं है तो देश का कोई अस्तित्व नहीं है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● शक्ति हमारे असंयत व्यवहार में नहीं बल्कि संयत कारवाई में निहित है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● मानव प्रकृति में दोनों प्रवृत्तियां रही हैं – एक तरफ क्रोध और लोभ तो दूसरी तरफ प्रेम और त्याग।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● धर्म के मूल सिद्धांत शाश्वत और सार्वभौमिक हैं. हालांकि, उनका क्रियान्वन समय, स्थान और परिस्थितियों के अनुसार अलग -अलग हो सकता है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● जब स्वाभाव को धर्म के सिद्धांतों के अनुसार बदला जाता है, तब हमें संस्कृति और सभ्यता प्राप्त होते हैं।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● हम लोगों ने अंग्रेजी वस्तुओं का विरोध करने में तब गर्व महसूस किया था जब वे (अंग्रेज ) हम पर शाशन करते थे, पर हैरत की बात है, अब जब अंग्रेज जा चुके हैं, पश्चिमीकरण प्रगति का पर्याय बन चुका है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● जब राज्य सभी शक्तियों, दोनों राजनीतिक और आर्थिक का अधिग्रहण कर लेता है, तो इसका परिणाम धर्म का पतन होता है।    


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● मुसलमान हमारे शरीर का शरीर और खून का खून हैं।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● धर्म एक बहुत व्यापक विचार है जो समाज को बनाये रखने के सभी पहलुओं से सम्बंधित है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● भारतीय संस्कृति की मौलिक विशेषता है कि यह जीवन को एक एकीकृत समग्र रूप में देखती है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● मानवीय ज्ञान आम संपत्ति है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● किसी सिद्धांत को ना मानने वाले अवसरवादी हमारे देश की राजनीति नियंत्रित करते हैं।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● अनेकता में एकता और विभिन्न रूपों में एकता की अभिव्यक्ति भारतीय संस्कृति की सोच रही है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● पश्चिमी विज्ञान और पश्चिमी जीवन दो अलग -अलग चीजें हैं. जहाँ पश्चिमी विज्ञान सार्वभौमिक है; और यदि हमें आगे बढ़ना है तो इसे हमारे द्वारा अवश्य अपनाया जाना चाहिए, वहीँ पश्चिमी जीवन और मूल्यों के बारे में ये बात सत्य नहीं है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● एक बीज, जड़ों, तानों, शाखाओं, पत्तियों, फूलों और फलों के रूप में अभिवयक्त होता है. इन सभी के अलग -अलग रूप, रंग और गुण होते हैं. फिर भी हम बीज के माध्यम से उनकी एकता के सम्बन्ध को पहचानते हैं।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● अंग्रेजी शब्द रिलिजन, धर्म के लिए सही शब्द नहीं है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● वहां जीवन में विविधता और बहुलता है लेकिन हमने हमेशा इसके पीछे की एकता को खोजने का प्रयास किया है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● यहाँ भारत में, हमने अपने समक्ष मानव के समग्र विकास के लिए शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा की आवश्यकताओं की पूर्ती करने की चार -स्तरीय जिम्मेदारियों का आदर्श रखा है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● पिछले एक हज़ार वर्षों में हमने जो भी आत्मसात किया चाहे वो हम पर थोपा गया या हमने स्वेच्छा से अपनाया – उसे अब छोड़ा नहीं जा सकता।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● अवसरवाद ने राजनीति में लोगों के विश्वास को हिला कर रख दिया है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● ये ज़रूरी है कि हम ‘ हमारी राष्ट्रीय पहचान ’ के बारे में सोचें जिसके बिना ‘स्वतंत्रता ’ का कोई अर्थ नहीं है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● स्वतंत्रता तभी सार्थक हो सकती है यदि वो हमारी संस्कृति की अभिव्यक्ति का साधन बन जाए।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ( चार पुरुषार्थ ) की लालसा मनुष्यों में जन्मजात होती है और समग्र रूप में इनकी संत्सुष्टि भारतीय संस्कृति का सार हैं।    


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● नैतिकता के सिद्धांत किसी के द्वारा बनाये नहीं जाते, बल्कि खोजे जाते हैं।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● भारत में नैतिकता के सिद्धांतों को धर्म कहा जाता है – जीवन जीने की विधि।  


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय


●•● भारत जिन समस्याओं का सामना कर रहा है उसका मूल कारण इसकी ‘राष्ट्रीय पहचान’ की उपेक्षा है।


– पण्डित दीनदयाल उपाध्याय