35+ जोश भर देने वाली मोटिवेशनल कविताएँ | Motivational Poem In Hindi

Motivational Poem In Hindi : हमारे भारत के कई महान कवियों द्वारा कुछ ऐसी कविताएं भी लिखी गई है जो हमें हताश होने पर रोकती हैं जिंदगी कभी एक जैसी नहीं होती जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते हैं कभी अच्छा समय चल रहा होता है तो कभी बुरा समय भी आता है उस समय निराशा हम पर हावी होने लगती है लेकिन यह मोटिवेशनल जोश भर देने वाली कविता Self Motivational Poem In Hindi पढ़कर आपको अपना काम करते रहने की दृढ़ता मिलेगी और निराशा में थोड़ी आशा जागेगी तो चलिए पढ़ते हैं Best Motivational Poem In Hindi 

 

बेहतरीन मोटिवेशनल कविताएँ | Motivational Poem In Hindi

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♦ सपने बुनना सीख लो – Motivational Poem In Hindi

बैठ जाओ सपनों के नाव में,
मौके की ना तलाश करो,
सपने बुनना सीख लो।
खुद ही थाम लो हाथों में पतवार,
माझी का ना इंतजार करो,
सपने बुनना सीख लो।
पलट सकती है नाव की तकदीर,
गोते खाना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।
अब नदी के साथ बहना सीख लो,
डूबना नहीं, तैरना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।
भंवर में फंसी सपनों की नाव,
अब पतवार चलाना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।
खुद ही राह बनाना सीख लो,
अपने दम पर कुछ करना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।
तेज नहीं तो धीरे चलना सीख लो,
भय के भ्रम से लड़ना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।
कुछ पल भंवर से लड़ना सीख लो,
समंदर में विजय की पताका लहराना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।
– नरेंद्र वर्मा

♦ पुष्प की अभिलाषा – Motivational Poem in Hindi

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चाह नहीं मैं सुरबाला के,
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में,
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव,
पर, हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के शिर पर,
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जाएँ वीर अनेक।
– माखनलाल चतुर्वेदी

♦ वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं (Motivational Poems in Hindi)

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जिन राहों पर दुश्मनों की निगाह होती है,
वो राहें ही हमारे लिए सर्वोपरि होती हैं !
मुश्किलों के राह मे चलने के कारण,
वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं!!
लोगों को कुछ पाने की तड़प होती है,
पर उनकी ये ख्वाब पूरी नहीं होती है!
चूंकि उनके जीवन में आलस्य होती हैं,
वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं!!
बीते हुए समय कभी नहीं लौटते हैं,
उन राहों में अपने भी खो जाते हैं!
फूलों और कांटों के ऊपर बनी,
वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं!!
काबिलियत से ही लोगों की पहचान होती है,
कर्मों से ही सपने स्वीकार होती हैं!
उन सब कर्मों को आज का अभी करें क्योंकि,
वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं!!

♦ मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं – Motivational Poems in Hindi

(मोटिवेशनल कविता हिंदी में)

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मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते..
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढाते..
सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं..
मेरे पग तब चलने में भी शर्माते..
मेरे संग चलने लगे हवायें जिससे..
तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं..
मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं..
हूं आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से..
सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूं..
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी..
तुम मत मुझपर कोई एहसान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
शर्म के जल से राह सदा सिंचती है..
गति की मशाल आंधी में ही हंसती है..
शोलो से ही श्रिंगार पथिक का होता है..
मंजिल की मांग लहू से ही सजती है..
पग में गति आती है, छाले छिलने से..
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
फूलों से जग आसान नहीं होता है..
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है..
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी..
है नाश जहां निर्मम वहीं होता है..
मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग “धरा” पर जिससे..
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता..
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता..
वेह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर..
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ्ता जाता..
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे..
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो..
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
– गोपालदास नीरज

♦ सपनों में उड़ान भरो

कुछ काम करो,
न मन को निराश करो
पंख होंगे मजबूत,
तुम सपनों में साहस भरो,
गिरोगे लेकिन फिर से उड़ान भरो,
सपनों में उड़ान भरो।
तलाश करो मंजिल की,
ना व्यर्थ जीवनदान करो,
जग में रहकर कुछ नाम करो,
अभी शुरुआत करो,
सुयोग बीत न जाए कहीं,
सपनों में उड़ान भरो।
समझो खुद को,
लक्ष्य का ध्यान करो,
यूं ना बैठकर बीच राह में,
मंजिल का इंतजार करो,
संभालो खुद को यूं ना विश्राम करो,
सपनों में उड़ान भरो।
उठो चलो आगे बढ़ो,
मन की आवाज सुनो,
खुद के सपने साकार करो,
अपना भी कुछ नाम करो,
इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करो,
सपनों में उड़ान भरो।
बहक जाएं गर कदम,
तो गुरु का ध्यान करो,
तुम पा ना सको ऐसी कोई मंजिल नहीं,
हार जीत का मत ख्याल करो,
अडिग रहकर लक्ष्य का रसपान करो,
सपनों में उड़ान भरो।
– नरेंद्र वर्मा

♦ चल तू अकेला (प्रेरणादायी कविता हिंदी – Motivational Poem in Hindi)

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तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,
जब सबके मुंह पे पाश..
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!
तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,
मनका गाना गूंज तू अकेला!
जब हर कोई वापस जाय..
ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय…
– रवीन्द्रनाथ ठाकुर

♦ हे वीर पुरुष

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हे वीर पुरुष, पुरुषार्थ करो
तुम अपना मान बढ़ाओ न …
अपनी इच्छा शक्ति के बल पर
उनको जवाब दे आओ न …
वे वीर पुरुष होते हीं नहीं
जो दूजों को तड़पाते हैं
वे वीर पुरुष होते सच्चे
जो दूजों का मान बढ़ाते हैं…
इतनी जल्दी थक जाओ नहीं
चलना तुमको अभी कोसों है
पांडव तो अब भी पाँच हीं हैं
पर कौरव अब भी सौ-सौ हैं…
– विद्या वैभव भरद्वाज

♦ वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है

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वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है,
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।
चिनगारी बन गई लहू की
बूँद गिरी जो पग से,
चमक रहे, पीछे मुड़ देखो,
चरण – चिह्न जगमग – से।
शुरू हुई आराध्य-भूमि यह,
क्लान्ति नहीं रे राही;
और नहीं तो पाँव लगे हैं,
क्यों पड़ने डगमग – से?
बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है;
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।
अपनी हड्डी की मशाल से
हॄदय चीरते तम का,
सारी रात चले तुम दुख
झेलते कुलिश निर्मम का।
एक खेय है शेष किसी विधि
पार उसे कर जाओ;
वह देखो, उस पार चमकता
है मन्दिर प्रियतम का।
आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है,
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।
दिशा दीप्त हो उठी प्राप्तकर
पुण्य-प्रकाश तुम्हारा,
लिखा जा चुका अनल-अक्षरों
में इतिहास तुम्हारा।
जिस मिट्टी ने लहू पिया,
वह फूल खिलायेगी ही,
अम्बर पर घन बन छायेगा
ही उच्छवास तुम्हारा।
और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई ! मंजिल दूर नहीं है।
– रामधारी सिंह “दिनकर”

♦ कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती,
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चढ़ती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फ़िसलती है,
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है,
मेहनत उसकी बेकार नहीं हर बार होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती,
डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा-जा कर खाली हाथ लौट कर आता है,
मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में..
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
असफ़लता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद-चैन को त्यागो तुम
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय-जयकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
– सोहनलाल द्विवेदी
♦ तू युद्ध कर
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माना हालात प्रतिकूल हैं, रास्तों पर बिछे शूल हैं
रिश्तों पे जम गई धूल है
पर तू खुद अपना अवरोध न बन
तू उठ.. खुद अपनी राह बना…
माना सूरज अँधेरे में खो गया है..
पर रात अभी हुई नहीं, यह तो प्रभात की बेला है
तेरे संग है उम्मीदें, किसने कहा तू अकेला है
तू खुद अपना विहान बन, तू खुद अपना विधान बन…
सत्य की जीत हीं तेरा लक्ष्य हो
अपने मन का धीरज, तू कभी न खो
रण छोड़ने वाले होते हैं कायर
तू तो परमवीर है, तू युद्ध कर – तू युद्ध कर…
इस युद्ध भूमि पर, तू अपनी विजयगाथा लिख
जीतकर के ये जंग, तू बन जा वीर अमिट
तू खुद सर्व समर्थ है, वीरता से जीने का हीं कुछ अर्थ है
तू युद्ध कर – बस युद्ध कर…

Self Motivation Poem Hindi

♦ खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा

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खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा,
कठिन रास्तों पे चलके नई दास्ताँ लिखूंगा..
अकेला चलूँगा मगर कारवाँ लिखूंगा,
अकेला चलूँगा मगर कारवाँ लिखूंगा!!
पैर जमीं पे होंगे लेकिन सपनों में आसमां लिखूंगा,
खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा!
खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा!!
न सपनों की तस्वीर बदलूँगा,
न चलने का तेवर बदलूँगा!!
घेरे चाहे प्रलय की घनघोर घटाएं,
रास्तों से ही मंजिल का पता पूछूंगा!!
अपनी रह खुद बनाऊंगा,
खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा!!
सतह तपे या पैरों में छाले पडें,
अपनी धुन में चलता जाऊँगा!!
खुद ही हमसफ़र और खुद से ही आगे बढ़ता जाऊंगा,
खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा!!
बुरे वक़्त का चेहरा बेनकाब करूंगा,
अच्छे वक़्त का खुद आइना हो जाऊंगा!!
भाग्य की रेखाओं को कर्म से बनाऊंगा,
किस्मत का सितारा खुद ही बन जाऊंगा!!
खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा!!
अंतरद्वन्द से खुद जीतूँगा,
प्रगति या अगति का मापदण्ड बदलूँगा!!
खुद से खुद का परिचय करवाके,
इतिहास पढ़ने वालों के लिए नई दास्ताँ लिखूंगा!!
खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा!!
संसाधनों की बुनियाद चाहे जैसी हो,
नींव विश्वास की, ईंट हिम्मत की,
नक्काशीं ख्वाहिशों की रखूंगा,
नाम धर्म शोभा रखूँगा,
खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा,
खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा!!

♦ अग्निपथ – Motivational Poem in Hindi

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वृक्ष हों भले खड़े,
हों बड़े, हों घने,
एक पत्र छाँह भी
मांग मत! मांग मत! मांग मत!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
तू न थकेगा कभी,
तू न थमेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
यह महान दृश्य है,
देख रहा मनुष्य है,
अश्रु, स्वेद, रक्त से
लथ-पथ, लथ-पथ, लथ-पथ,
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
– हरिवंशराय बच्चन

♦ तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

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आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड़ में साहस तोलो,
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
यह असीम, निज सीमा जाने
सागर भी तो यह पहचाने,
मिट्टी के पुतले मानव ने
कभी न मानी हार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
सागर की अपनी क्षमता है
पर माँझी भी कब थकता है,
जब तक साँसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
– शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

♦ छिप-छिप अश्रु बहाने वालों

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छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी..,
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!
– गोपालदास “नीरज

♦ विपत्ति जब आती है

motivational poem in hindi
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♦ सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मुहँ से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
गुन बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भितर,
मेंहदी में जैसी लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियाली हो,
बत्ती जो नहीं जलाता है,
रोशनी नहीं वह पाता है।
– रामधारी सिंह “दिनकर”

♦ सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

motivational poem in hindi
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♦ सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है l
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आस्माँ !
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है l
एक से करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है।
रहबरे-राहे-मुहब्बत ! रह न जाना राह में,
लज्जते-सेहरा-नवर्दी दूरि-ए-मंजिल में है।
अब न अगले वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-‘बिस्मिल’ में है ।
ए शहीद-ए-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफ़िल में है।
खींच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है l
है लिये हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर।
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हाथ जिनमें हो जुनूँ, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से,
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हम तो निकले ही थे घर से बाँधकर सर पे कफ़न,
जाँ हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम।
जिन्दगी तो अपनी महमाँ मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
यूँ खड़ा मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है l
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है l
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज।
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है !
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ।
जिस्म वो क्या जिस्म है जिसमें न हो खूने-जुनूँ,
क्या वो तूफाँ से लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है l
– बिस्मिल अज़ीमाबादी

♦ तुम चलो तो सही

motivational poem in hindi
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राह में मुश्किल होगी हजार,
तुम दो कदम बढाओ तो सही,
हो जाएगा हर सपना साकार,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
मुश्किल है पर इतना भी नहीं,
कि तू कर ना सके,
दूर है मंजिल लेकिन इतनी भी नहीं,
कि तु पा ना सके,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
एक दिन तुम्हारा भी नाम होगा,
तुम्हारा भी सत्कार होगा,
तुम कुछ लिखो तो सही,
तुम कुछ आगे पढ़ो तो सही,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
सपनों के सागर में कब तक गोते लगाते रहोगे,
तुम एक राह चुनो तो सही,
तुम उठो तो सही, तुम कुछ करो तो सही,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
कुछ ना मिला तो कुछ सीख जाओगे,
जिंदगी का अनुभव साथ ले जाओगे,
गिरते पड़ते संभल जाओगे,
फिर एक बार तुम जीत जाओगे।
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
– नरेंद्र वर्मा

♦ क्यो डरता है – Motivational Poem in hindi

कोने में बैठ कर क्यों रोता है,
यू चुप चुप सा क्यों रहता है।
आगे बढ़ने से क्यों डरता है,
सपनों को बुनने से क्यों डरता है।
तकदीर को क्यों रोता है,
मेहनत से क्यों डरता है।
झूठे लोगो से क्यों डरता है,
कुछ खोने के डर से क्यों बैठा है।
हाथ नहीं होते नसीब होते है उनके भी,
तू मुट्ठी में बंद लकीरों को लेकर रोता है।
भानू भी करता है नित नई शुरुआत,
सांज होने के भय से नहीं डरता है।
मुसीबतों को देख कर क्यों डरता है,
तू लड़ने से क्यों पीछे हटता है।
किसने तुमको रोका है,
तुम्ही ने तुम को रोका है।
भर साहस और दम, बढ़ा कदम,
अब इससे अच्छा कोई न मौका है।
– नरेंद्र वर्मा

♦ किस्तों मे मत जिया करो – Hindi Motivational Poem

motivational poem in hindi
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हर पल है जिंदगी का उम्मीदों से भरा,
हर पल को बाहों में अपनी भरा करो,
किस्तों में मत जिया करो।
सपनों का है ऊंचा आसमान,
उड़ान लंबी भरा करो,
गिर जाओ तुम कभी,
फिर से खुद उठा करो।
हर दिन में एक पूरी उम्र,
जी भर के तुम जिया करो,
किस्तों में मत जिया करो।
आए जो गम के बादल कभी,
हौसला तुम रखा करो,
हो चाहे मुश्किल कई,
मुस्कान तुम बिखेरा करो।
हिम्मत से अपनी तुम,
वक्त की करवट बदला करो,
जिंदा हो जब तक तुम,
जिंदगी का साथ ना छोड़ा करो,
किस्तों में मत जिया करो।
थोड़ा पाने की चाह में,
सब कुछ अपना ना खोया करो,
औरों की सुनते हो
कुछ अपने मन की भी किया करो,
लगा के अपनों को गले गैरों के संग भी हंसा करो,
किस्तों में मत जिया करो।
मिले जहां जब भी जो खुशी,
फैला के दामन बटोरा करो,
जीने का हो अगर नशा,
हर घूंट में जिंदगी को पिया करो,
किस्तों में मत जिया करो।
-विनोद तांबी

♦ हे वीर पुरुष, पुरुषार्थ करो

motivational poem in hindi
motivational poem in hindi

 

♦ हे वीर पुरुष, पुरुषार्थ करो
तुम अपना मान बढ़ाओ न …
अपनी इच्छा शक्ति के बल पर
उनको जवाब दे आओ न …
वे वीर पुरुष होते हीं नहीं
जो दूजों को तड़पाते हैं
वे वीर पुरुष होते सच्चे
जो दूजों का मान बढ़ाते हैं…
इतनी जल्दी थक जाओ नहीं
चलना तुमको अभी कोसों है
पांडव तो अब भी पाँच हीं हैं
पर कौरव अब भी सौ-सौ हैं…
– विद्या वैभव भरद्वाज

Self Motivational Poem in Hindi

♦ घुट-घुट कर जीना छोड़ दे,

घुट-घुट कर जीना छोड़ दे,
तू रुख हवाओं का मोड़ दे,
हिम्मत की अपनी कलम उठा,
लोगों के भरम को तोड़ दे,
तू छोड़ ये आंसू उठ हो खड़ा,
मंजिल की ओर अब कदम बढ़ा,
हासिल कर इक मुकाम नया,
पन्ना इतिहास में जोड़ दे,
घुट-घुट कर जीना छोड़ दे,
तू रुख हवाओं का मोड़ दे,
हिम्मत की अपनी कलम उठा,
लोगों के भरम को तोड़ दे।
उठना है तुझे नहीं गिरना है,
जो गिरा तो फिर से उठना है,
अब रुकना नहीं इक पल तुझको,
बस हर पल आगे बढ़ना है,
राहों में मिलेंगे तूफ़ान कई,
मुश्किलों के होंगे वार कई,
इन सबसे तुझे न डरना है,
तू लक्ष्य पे अपने जोर दे,
घुट-घुट कर जीना छोड़ दे,
तू रुख हवाओं का मोड़ दे,
हिम्मत की अपनी कलम उठा,
लोगों के भरम को तोड़ दे।
चल रास्ते तू अपने बना,
छू लेना अब तू आसमान,
धरती पर तू रखना कदम,
बनाना है अपना ये जहाँ,
किसी के रोके न रुक जाना तू,
लकीरें किस्मत की खुद बनाना तू,
कर मंजिल अपनी तू फतह,
कामयाबी के निशान छोड़ दे,
घुट-घुट कर जीना छोड़ दे,
तू रुख हवाओं का मोड़ दे,
हिम्मत की अपनी कलम उठा,
लोगों के भरम को तोड़ दे।

♦ बात पहले हो योग्यताओं की

समय से पहले बोझ लगती हैं सफलताएँ,
ऊँचाईयों को थामे रखने में लगती हैं क्षमताएं !
कभी गति तेज़ तो कभी धीमी ही सही,
क्यों शीघ्रता हो तुम्हें सफलताओं की,
बात पहले हो योग्यताओं की !!
हर क्षण विलंब का निपुणता में जुड़ता रहेगा,
व्यर्थ ना होगा कुछ भी, श्रम से तेरा व्यक्तित्व निखरता रहेगा !!
जो रखा है नियति ने उसके योग्य बनते हैं,
विधाता से नहीं, कुछ प्रश्न स्वंय से करते हैं !!
मिला है कुछ समय तो, परख ले हर तीर तरकश का,
फिर जब चढ़े तब चढ़े प्रत्यंचा धनुष की,
क्यों शीघ्रता हो तुम्हें सफलताओं की !!
किसे, किस रण का परिणाम ज्ञात होता है?
जो निष्काम लड़ता रहे, योद्धा वही वीर होता है !!
एक मन अधीर कितनी देर शिखर पर टिक पायेगा,
सुजन वही प्रवासी, जो प्रयास को अभ्यास बनाएगा !!
मिला है कुछ अवकाश तो, हर पहलु तराश ले कौशल का,
फिर जब हो तब हो श्रंखला परीक्षाओं की,
क्यों शीघ्रता हो तुम्हें सफलताओं की,
बात पहले हो योग्यताओं की !!
♦ बदलना अपना दृष्टिकोण
चलो स्वंय से निर्णय करें हम,
विपत्ति का खोजेंगे समाधान !
एकाग्र अगर हम हो सके तो,
पत्थर में प्रकट होंगे भगवान !!
पथ में होंगे अनेकों अनुभव,
कभी चंचल मन मानेगा हार !
प्रयास करना व्यर्थ ही होगा,
विफलता कहेगी यह बारंबार !!
किन्तु तेरे समक्ष हे! मानव प्रतिएक विपत्ति होगी ढेर !
सफलता कदम चूमेगी तेरे,
धैर्य रखना होगा थोड़ी देर !!
संकट तुझसे बड़ा ना कोई,
पर्वत तूने का घमंड तोडा !
विरत सरिता की लहरों को,
अपनी बुद्धिमता से मोड़ा !!
जीवन की किसी राह में,
एक क्षण न होना निराश !
अपने गुणों को करना प्रखर,
कभी ना खोना तू विश्वास !!
बाधा कोई जब न सुलझे,
ध्यान लगाना रहना मौन !
समस्या में ही हल होगा,
बदलना अपना दृष्टिकोण
♦ खुद को याद दिलाना होगा
नींद-चैन का त्याग कर, आँख खोलनी पड़ती है,
मेहनत करना आसान नहीं, पूरी जान झोंकनी पड़ती है !
दिन-रात को एक बनाकर, मेहनत से सफलता मिलती है,
माली के खून पसीने से ही बाग़ में कलि खिलती है !
जिस मेहनत को करने से तू आज थर-थर कांपता है,
इसी मेहनत और तपस्या में सफलता का रास्ता है !
इस दृढ़ता, इस पागलपन को आदत तुझे बनाना होगा,
छू सकता है तू हर मंज़िल खुद को याद दिलाना होगा !
हार-जीत की सोच रखे बिन, मेहनत अब तुझे करनी है,
लोगों की क्यों बात सुने, जब जंग तुझे खुद लड़नी है !
कोशिश तेरी काया, और मेहनत तेरी परछाई है,
लोगों की इन बातों से नहीं, खुद से तेरी लड़ाई है !
कठिन राह है काँटों वाली, किन्तु मंज़िल में फूल मिलेंगे,
परिश्रम तेरा कठिन है किन्तु, परिणाम तेरे अनुकूल मिलेंगे !
परिश्रम की गर्मी में, खुद को तुझे तपाना होगा,
छू सकता है तू हर मंज़िल, खुद को याद दिलाना होगा!
दुनिया गीत गाएगी तेरे अबकी बार देखना,
चूक रहे न कोशिश में कुछ, एक ऐसी पारी खेलना !
ये कठिन परिश्रम तेरा, ये मेहनत रंग लाएगी,
रात अमावस की है काली, पर फिर दिवाली आएगी !
अभी जमीन का कण भर है, आगे पूरा आकाश है,
बीएस चलते जाना है तुझको, मंजिल तेरे पास है !
इस कीमती जीवन को व्यर्थ नहीं गवाना होगा,
छू सकता है तू हर मंज़िल, खुद को याद दिलाना होगा
♦ जीतना अभी बाकी है
तू कर हिम्मत उठ कर चलने की !
तेरी हिम्मत की परीक्षा अभी बाकी है !!
कदम दर कदम चलना ही सीखा है तुमने !
ज़िन्दगी के रास्तों में दौड़ना तेरा अभी बाकी है !!
रंग उम्मीद का उतरने ना देना,
ज़िन्दगी में कई रंगीनियाँ अभी बाकी है !!
देख रहा है ज़माना तुम्हें घूरकर !
संभल जा थोड़ा, ज़माने को घूरकर देखना अभी बाकी है !!
एक एक कर साथ छूट रहा है !
देखता रह किन किन का हाथ छूटना अभी बाकी है !!
अँधेरा है राहों में और डर है निगाहों में !
चलता रह राही, सुबह का पहर आना अभी बाकी है !!
कोशिश करके भी हर बार जो निराशा मिली !
मत हो उदास, कोशिशों का संसार अभी बाकी है !!
धुप है तेज़ मुश्किलों की, तोड़ मत इरादों को !
राहतों की ठंडी छाँव अभी बाकी है !!
पतझड़ है जो अभी चरम पर !
नयी उम्मीदों का बसंत अभी बाकी है
♦ खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा
खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा !
कठिन रास्तों पे चलके नई दास्ताँ लिखूंगा !!
अकेला चलूँगा मगर कारवाँ लिखूंगा, अकेला चलूँगा मगर कारवाँ लिखूंगा !!
पैर जमीं पे होंगे लेकिन सपनों में आसमां लिखूंगा !
खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा, खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा !!
न सपनों की तस्वीर बदलूँगा !
न चलने का तेवर बदलूँगा !!
घेरे चाहे प्रलय की घनघोर घटाएं !
रास्तों से ही मंजिल का पता पूछूंगा !!
अपनी रह खुद बनाऊंगा, खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा !!
सतह तपे या पैरों में छाले पडें !
अपनी धुन में चलता जाऊँगा !!
खुद ही हमसफ़र और खुद से ही आगे बढ़ता जाऊंगा !
खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा !!
बुरे वक़्त का चेहरा बेनकाब करूंगा !
अच्छे वक़्त का खुद आइना हो जाऊंगा !!
भाग्य की रेखाओं को कर्म से बनाऊंगा !
किस्मत का सितारा खुद ही बन जाऊंगा !!
खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा !!
अंतरद्वन्द से खुद जीतूँगा !
प्रगति या अगति का मापदण्ड बदलूँगा !!
खुद से खुद का परिचय करवाके !
इतिहास पढ़ने वालों के लिए नई दास्ताँ लिखूंगा !!
खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा !!
संसाधनों की बुनियाद चाहे जैसी हो !
नींव विश्वास की, ईंट हिम्मत की,
नक्काशीं ख्वाहिशों की रखूंगा,
नाम धर्म शोभा रखूँगा ,

खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा, खुद ही खुद की पहचान लिखूंगा !!

♦ तुम मन की आवाज़ सुनो
तुम मन की आवाज सुनो
तुम मन की आवाज सुनो,
जिंदा हो, ना शमशान बनो,
पीछे नहीं आगे देखो,
नई शुरुआत करो।
मंजिल नहीं, कर्म बदलो,
कुछ समझ ना आए,
तो गुरु का ध्यान करो,
तुम मन की आवाज सुनो।
लहरों की तरह किनारों से टकराकर,
मत लौट जाना फिर से सागर,
साहस में दम भरो फिर से,
तुम मन की आवाज सुनो।
सपनों को देखकर आंखें बंद मत करो,
कुछ काम करो,
सपनों को साकार करो,
तुम मन की आवाज सुनो।
इम्तिहान होगा हर मोड़ पर,
हार कर मत बैठ जाना किसी मोड़ पर,
तकदीर बदल जाएगी अगले मोड़ पर,
तुम अपने मन की आवाज सुनो
– नरेंद्र वर्मा
♦ हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
 देखो कहीं बरबाद न होवे ये बगीचा
 इसको हृदय के खून से बापू ने है सींचा
 रक्खा है ये चिराग़ शहीदों ने बाल के
 इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
 दुनियाँ के दांव पेंच से रखना न वास्ता
मंजिल तुम्हारी दूर है लंबा है रास्ता
 भटका न दे कोई तुम्हें धोखे में डाल के
 इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
एटम बमों के जोर पे ऐंठी है ये दुनियाँ
बारूद के इक ढेर पे बैठी है ये दुनियाँ
 तुम हर कदम उठाना जरा देखभाल के
 इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
आराम की तुम भूल-भुलैया में न भूलो
सपनों के हिंडोलों में मगन हो के न झूलो
अब वक़्त आ गया मेरे हंसते हुए फूलों
उठो छलांग मार के आकाश को छू लो
तुम गाड़ दो गगन में तिरंगा उछाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
– प्रदीप
♦ क्यों रोता है तू उस वक्त के लिए
क्यों रोता है तू उस वक्त के लिए
जिस वक्त ने तुझे तोड़ दिया।
तुझ जैसे परिंदे को
जमीन पर लाकर छोड़ दिया।
तू उठ और अपनी किस्मत खुद लिख
बता उस खुदा को की।
उसके कलमो से ज्यादा
तेरी कर्मों में ताकत है।
तेरी कर्मों की ताकत ने
उसके कलमों का रुख मोड़ दिया।
तूने नसीब की लकीरों पर
अपनी कामयाबी की छाप छोड़ दिया।
क्यों कहूं कि हर रोज तू
अपना एक दिन खोता जाता है।
मैं तो कहता हूं रोज तू
एक नया इतिहास लिखता जाता है।
♦ खड़ा हिमालय बता रहा है
खड़ा हिमालय बता रहा है
डरो न आंधी पानी में।
खड़े रहो तुम अविचल होकर
सब संकट तूफानी में।
डिगो ना अपने प्रण से‚ तो तुम
सब कुछ पा सकते हो प्यार‚
तुम भी ऊंचे उठ सकते हो
छू सकते हो नभ के तारे।
अचल रहा जो अपने पथ पर
लाख मुसीबत आने में‚
मिली सफलता जग में उस को
जीने में मर जाने में।
♦तुम चलो तो सही
motivational poem in hindi
motivational poem in hindi

 

राह में मुश्किल होगी हजार,
तुम दो कदम बढाओ तो सही,
हो जाएगा हर सपना साकार,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
मुश्किल है पर इतना भी नहीं,
कि तू कर ना सके,
दूर है मंजिल लेकिन इतनी भी नहीं,
कि तु पा ना सके,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
एक दिन तुम्हारा भी नाम होगा,
तुम्हारा भी सत्कार होगा,
तुम कुछ लिखो तो सही,
तुम कुछ आगे पढ़ो तो सही,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
सपनों के सागर में कब तक गोते लगाते रहोगे,
तुम एक राह चुनो तो सही,
तुम उठो तो सही, तुम कुछ करो तो सही,
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
कुछ ना मिला तो कुछ सीख जाओगे,
जिंदगी का अनुभव साथ ले जाओगे,
गिरते पड़ते संभल जाओगे,
फिर एक बार तुम जीत जाओगे।
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
♦ वीर तुम बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो
हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो।
धीर तुम बढ़े चलो।।
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो।
धीर तुम बढ़े चलो।।
प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो।
धीर तुम बढ़े चलो।।
एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए
मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये
वीर तुम बढ़े चलो।
धीर तुम बढ़े चलो।।
अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
वीर तुम बढ़े चलो।
धीर तुम बढ़े चलो।।
♦ दिन जल्दी-जल्दी ढलता है
♦ दिन जल्दी-जल्दी ढलता है
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगॆ
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
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