मुहम्मद अली की सफलता की कहानी | Muhammad Ali Success Story in Hindi

मुहम्मद अली की सफलता की कहानी | Muhammad Ali Success Story and work ethic in Hindi


मुहम्मद अली की सफलता की कहानी | Muhammad Ali Success Story and work ethic in Hindi

मुहम्मद अली की सफलता की कहानी | Muhammad Ali Success Story in hindi


अली का जन्म अमेरिका के केंटुकी राज्य में हुआ था। अली को अपने रंग की वजह से बचपन से ही भेदभाव का शिकार होना पड़ा था। उस दौरान लगभग सभी सुविधाओं का बंटवारा लोगों के काले या गोरे रंग के आधार पर होता था। बचपन में एक दुकानदार ने अली को केवल उनके रंग की वजह से पानी पिलाने से मना कर दिया था। यह बात उनके दिल को चोट पहुंचा गई। अली ने इस भेदभाव को खत्म करने का ठान लिया। उनकी बॉक्सिंग की शुरुआत बेहद दिलचस्प घटना के साथ हुई।


अली जब 12 साल के थे तब उनके पिता ने उन्हें एक साइकिल तोहफे में दी थी। वे उस साइकिल को बहुत पसंद करते थे और उसकी जी-जान से देखभाल करते थे। लेकिन एक दिन साइकिल चोरी हो गई। उन्हें बहुत दुख हुआ था। अली ने ठान लिया था कि वे बिना किसी की सहायता के खुद ही चोर को पकड़ेंगे और उसे सजा भी देंगे। इस बात को वे अपने मन में लिए अपने जान-पहचान के पुलिस अंकल के पास गए। साइकिल चोरी की बात बताते हुए अली ने उनसे चोर को पकड़ने  का तरीका पूछा। अंकल ने कहा ‘बेटा चोर को ऐसे ही नहीं पकड़ा जाता है। चोर को पकड़ने और सजा देने के लिए बॉक्सिंग आना जरूरी है।’ इस बात को अली ने गंभीरता से ले लिया और तुरंत ही बॉक्सिंग सीखना शुरू कर दी।


समय बीतने के साथ ही उनको बॉक्सिंग का जुनून हो गया। छह साल बाद 1960 रोम ओलिंपिक्स में दुनिया ने अली का असली रूप देखा जब उनका मुक्का गोल्ड पर जा लगा। इस समय अली की उम्र केवल 18 साल ही थी। इसके बाद वे अमेरिका में बहुत पसंद किए जाने लगे। बॉक्सिंग में अली की असली चुनौती 22 साल की उम्र में सामने आई जब उनका मुकाबला मशहूर बॉक्सर सनी लिस्टन से हुआ था।


Karol Dweck अपनी किताब mindset में कहती हैं मोहम्मद अली किसी भी Measurements में पास नहीं हुए करियर की शुरुआत में उन्हें Rejected bucket में डाल दिया गया लेकिन मोहम्मद अली के पास दूसरा एडवांटेज भी था जिसको कैरोल कहती हैं ग्रोथ माइंडसेट, जिसे हम वर्क एथिक या बिलीफ सिस्टम कहेंगे।


अली के दिमाग में बचपन से यह बैठा हुआ था कि वह जिस चीज पर ध्यान लगाएंगे उसे सीख सकते हैं। छोटी उम्र से ही उन्होंने अपनी बॉक्सिंग में अंतर लाना शुरू कर दिए थे जहां कुछ सब को सिखाते कि अपना हाथ ऊपर करके चेहरा ढंको वहां अली अपना Guard नीचे रखते। जहां बॉक्सर बचने के लिए दाएं बाएं shuffle करते वहां अली एक झटके से हट जाते हैं अली के करियर की यह अब तक की सबसे बड़ी फाइट होने वाली थी।


मोहम्मद अली ने Sony Liston को पढ़ना शुरू किया ना केवल उनकी फाइटिंग स्टाइल या जिम ट्रेनिंग बल्कि उन्होने देखना शुरू किया कि बॉक्सिंग रिंग के बाहर sony किस तरह के इंसान हैं अली match की तैयारी के बारे में बताते हैं कि उन दिनों इंटरनेट तो था नहीं मैंने पब्लिक लाइब्रेरी की सारी स्पोर्ट्स मैगजीन और न्यूज़पेपर छान मारे और सनी के सारे इंटरव्यू और उन पर लिखे सारे लेख जान लिए। मैं उन लोगों से मिला जो सनी के आस-पास रहते थे, जो थोड़ा बहुत भी सनी को जानते थे।


मैं उनसे बातें करता और बीच-बीच में सनी के बारे में पूछता फिर रात तक उन सारी बातों के बारे में सोचता सोचता सो जाता। धीरे-धीरे सनी के दिमाग की पिक्चर सामने बनने लगी कि यह आदमी कैसे सोचता है, इसे कौन सी चीज परेशान कर सकती है। क्योंकि सभी जानते थे कि वह मुक्का मैच खत्म करता है जिसकी दुश्मन को उम्मीद ना हो। लिस्टन के सामने टिकने की कोई हिम्मत नहीं करता था, लेकिन अली ने लिस्टन को हराकर मुकाबला अपने नाम कर लिया। उनकी इस जीत ने बॉक्सिंग जगत में तहलका मचा दिया। हालांकि कुछ लोग इसे केवल इत्तफाक मान रहे थे लेकिन अली ने अगले ही साल एक बार फिर सनी लिस्टन को रिंग में पीट कर लोगों को गलत साबित किया और अपनी बादशाहत की तरफ एक और कदम बढ़ाया।


उन्होंने मैच के पहले पागलों जैसे बयान दिए अली खुद कहते हैं कि सनी को विश्वास दिलाना जरूरी था कि मैं सनकी और थोड़ा पागल हूं, कि मैं खाली बोलने के अलावा कुछ और नहीं कर सकता अली का विश्वास था कि होशियारी और मेहनत से रास्ते निकाले नहीं बल्कि बनाए जा सकते हैं।


अली एक चैंपियनशिप से दूसरी तक ऐसे ही रास्ते बनाते चले गए दोस्तों अगर हमने भी अपने अंदर यह विश्वास बैठा लिया तो हम भी एक चैंपियन जैसे कभी नहीं कह पाएंगे कि यह नहीं हो सकता बल्कि रास्ते खोजते जाएंगे और बनाते जाएंगे।


हमारा काम हमारे बिलीफ सिस्टम का रिफ्लेक्शन है अगर आप सोचते हैं कि आप सफलता के लायक नहीं है तो आप बीच-बीच में काम खुद ही बिगाड़ लेंगे। खुद बना हुआ रूटीन तोड़ लेंगे, अगर आप सोचते हैं की आप में कुछ कमी है तो आते हुए जवाब नहीं दे पाएंगे अगर आपका काम एक इमारत है तो work ethic उसकी नींव है। आपको अच्छी बिल्डिंग खड़ी करनी है तो आपके सोर्स यानी आपको अपने बिलीफ सिस्टम पर काम करना होगा।


विराट कोहली मोहम्मद अली और बाकी खिलाड़ियों से सीख लीजिए बल्कि इनके काम करने के कुछ तरीके अपने अंदर उतार लीजिए लेकिन कैसे?


हर दिन affirmation कीजिए छोटे-छोटे रिचुअल बनाइए जिससे आपको इन छोटी-छोटी बातों पर विश्वास हो जाए।

हम सभी के पास समय सीमित है अली 1975 के फेमस इंटरव्यू में कहते हैं,


जो 50 साल का इंसान दुनिया या खुद के बारे में वैसा ही जानता है जैसा वह 20 साल की उम्र में जानता था, तो उसने अपनी ज़िंदगी के 30 साल खराब कर दिए हैं।

दोस्तों जो भी आपके पास कला या मौका हो उसका पूरा उपयोग कीजिये मेहनत और प्रयास को घर बचाकर मत ले जाइए क्योंकि इनको बचाने से आपका कभी मानसिक विकास नही होगा।


ali अपनी किताब the soul of butterfly में कहते हैं की अगर मैं कचरे वाला होता तो क्या कमाल का कचरा वाला होता, मैं बहुत जल्दी और बहुत सफाई से कचरा उठाता कि देखने वाला उस जगह की चमक से प्रभावित हो जाता। अगर मैं जर्नलिस्ट होता और मोहम्मद अली का इंटरव्यू लेने जाता तो उस इंटरव्यू से पहले में अली के जीवन के बारे में उनसे ज्यादा जान लेता जिससे मैं उनसे बिल्कुल अलग नजरिए से इंटरव्यू ले पाता वो बातें निकाल पाता जो अभी तक किसी ने पूछी ही नही हैं। अली साहब कहते हैं अच्छा काम करने से बहुत कुछ सीखने को मिलता है इसलिए कोई काम, कोई तारीख या कोई मौका छोटा नहीं है। मेहनत और Dedication को घर मत ले जाइए इन्हें आज अभी यहीं खर्च कीजिये।


Cassius clay बचपन से ही अलग काम कर रहे थे वह यह सब इसलिए कर पाए क्योंकि उन्हें खुद पर अटूट भरोसा था कॉन्फिडेंस उनकी पर्सनालिटी का मुख्य आधार था। अली जीतते भी थे तो कॉन्फिडेंस में वह हारते भी थे तो कॉन्फिडेंस में। 


अली कहते हैं कि हम सब दूसरों को दिखाने के लिए काम करते हैं जब टीचर सर पर खड़ा होता था तो पढ़ लेते थे जब बोस आस पास खड़ा रहता था तो बढ़िया काम कर लिया करते थे लेकिन जब कोई आस पास नहीं होता तब आप क्या करते हो?


जैसा हम अपने आप से अकेले में व्यवहार करेंगे वैसा हमारा कॉन्फिडेंस होगा आप दुनिया से झूठ बोल सकते हो खुद से नहीं कुछ ही लोग होते हैं जो बिना तालियां अवॉर्ड्स के चुपचाप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकते हैं इनकी सबकॉन्शियस को यह पता होता है कि हम प्रयास में कोई कमी नहीं छोड़ते किसी भी स्थिति हो हम बढ़िया कर ही लेते हैं ऐसी भावना से सच्चा कॉन्फिडेंस प्राप्त होता है कॉन्फिडेंस पैदा करने का दूसरा कोई उपाय नहीं है।


अली अपने एक इंटरव्यू में कहते हैं कि मुझे ट्रेनिंग का 1 मिनट भी पसंद नहीं था I hated every minute of it लेकिन मैं खुद से कहता कि यहां कष्ट भोग लो और पूरी जिंदगी चैंपियन बनकर जियो अली साहब यह कहना चाह रहे हैं कि आप शारीरिक मानसिक या किसी भी तरह के अभ्यास से ट्रेनिंग करें यह कठिन तो होगी ही अगर नहीं है तो आप सीख नहीं रहे हैं यही कठिनाई यही ट्रेनिंग आपको चैंपियन बनायेगी।


हमें अपने अंदर यह बात बैठा लेना चाहिए कि आप चाहे चैंपियन डॉक्टर बने, या चैंपियन एथलीट अभ्यास तो करना ही है अभ्यास कठिन या दुखदाई हो सकता है लेकिन यह बहुत काम की चीज है।


मोहम्मद अली 56 फाइट जीते और पांच हारे जब वह जीतते थे तो अपनी तारीफ में कोई कसर नहीं छोड़ते थे यह उनकी पर्सनालिटी का एक हिस्सा था ओर यह जरूरी था क्योंकि अगर आप boring हैं तो आपकी फाइट को देखने कौन आएगा लेकिन वह हारने में भी बड़े शालीन थे एक प्रसिद्ध बॉक्सर से हारने के बाद वह कहते हैं कि मैंने हार के बारे में कभी सोचा नहीं लेकिन आज जब हरा हूं तो ढंग से हारूँगा अपने फैंस की प्रीति इतनी जिम्मेदारी तो है मेरी, चेम्पियन हारने के बारे में सोचते नही लेकिन अगर आ जाये तो मुँह नही चुराते सीखते हैं और आगे बढ़ जाते हैं।


अश्वेत लोगों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने की वजह से अली के निजी जीवन में काफी उथल-पुथल मची हुई थी। इन सभी समस्याओँ से परेशान होकर अली ने इस्लाम धर्म अपनाया और अपना नाम कैसियस मार्सेलस क्ले से मोहम्मद अली कर लिया। अली अपने पुराने नाम को गुलामी की पहचान बताते थे। वियतनाम युद्ध के समय अली ने अमेरिकी सेना के साथ जाने से मना कर दिया तो उनके सभी मेडल छीन लिए गए। बॉक्सिंग लाइसेंस और पासपोर्ट जब्त कर उन पर बैन लगा दिया गया और पांच साल जेल की सजा सुनाई गई। लेकिन अली का हौसला अभी बाकी था। उन्होंने अमेरिकी सरकार की कार्यवाही के खिलाफ लड़ाई लड़ी और कोर्ट ने उनपर लगे आरोपों को गलत बताते हुए अपने फैसले को बदल दिया। उनपर लगे प्रतिबंध हटा दिए गए। 


अली ने 1971 में तीन साल बाद रिंग में वापसी की। लेकिन वे वापसी के बाद का पहला मुकाबला हार गए। इसी के साथ उनका कभी ना हारने का रिकॉर्ड भी टूट गया था। लेकिन अगली ही फाइट से अली फिर से जीत की राह पर लौटे। इसके बाद कभी पीछे ना देखते हुए उन्होंने बॉक्सिंग में अपनी बादशाहत कायम की।  बॉक्सिंग के सभी रिकॉर्ड तो़ड़ते हुए उन्होंने 1981 में अपने करियर की अंतिम फाइट लड़ी। 1984 में उन्हें पार्किंसन नाम की बीमारी हो गई। लेकिन अली का संघर्ष आखिरी दिन तक चलता रहा और वे दुनियाभर में शांति और दोस्ती की तरफ कदम बढ़ाते रहे। 2005 में उन्हें अमेरिका के सबसे बड़े अवॉर्डप्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम से सम्मानित किया गया। 


हम सब को हार का सामना करना आना चाहिए अगर हमें गिरने से डर लगता है तो हम कभी दौड़ नहीं सकते दोस्तों यह बात दिमाग में बैठा लीजिए कि जो लोग दौड़ नहीं सकते केवल वही गिरने से डरते हैं।