उसैन बोल्ट की सफलता की कहानी | Usain Bolt success story and work ethics in hindi
दोस्तों आज हम बात करेंगे एक ऐसे इंसान की जो चीते की रफ्तार से दौड़ता है और जिसकी रफ्तार का अंदाजा सिर्फ high-definition कैमरे से ही लगाया जा सकता है जी हां दोस्तों हम बात कर रहे हैं दुनिया के सबसे तेज इंसान उसैन बोल्ट की। जिन्होंने तीन ओलंपिक्स में आठ गोल्ड मेडल अपने नाम किए हैं और सिर्फ इतना ही नहीं 2008 से सभी ओलंपिक्स के 100 मीटर और 200 मीटर रेस में जीतकर वह वर्ल्ड रिकॉर्ड बना चुके हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि आज के समय में दुनिया का सबसे तेज इंसान का जन्म बेहद ही गरीब परिवार में हुआ उनके गांव में ना है तो बिजली थी और ना ही घर-घर पीने के लिए पानी। लेकिन इन सभी परेशानियों का बखूबी से सामना करके उसैन बोल्ट ने यह बता दिया कि अगर इंसान के अंदर दिल से कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है।
उसैन बोल्ट का जन्म 21 अगस्त 1986 को जमैका के एक छोटे से गांव शेरवुड कंटेंट में हुआ था। जमैका वेस्टइंडीज का एक बहुत ही प्रसिद्ध द्वीप है। जमैका की राजधानी किंग्सटन से उसैन बोल्ट के गांव तक की दूरी तय करने में करीब 3 घंटे का समय लगता है और उनके इस गांव में ना तो सड़कों पर लाइट है और ना ही पानी की व्यवस्था है। लेकिन उनके परिवार वालों का कहना है कि उन्हें इस तरह की जिंदगी से कोई शिकवा नहीं है। बोल्ट के पिता का नाम वेलेजली और मां का नाम जेनिफर है जो गांव में ही एक छोटी सी किराने की दुकान चलाकर अपने और अपने बच्चों की आत्मजरुरतों को पूरा करते हैं।
बोल्ट ने अपना बचपन अपने भाई के साथ गली में फुटबॉल और क्रिकेट खेलते हुए बिताया उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब मैं छोटा था तब मैं वास्तव में खेल के अलावा किसी और चीज के बारे में नहीं सोचता था और इसीलिए शुरू से ही बोल्ट ने अपने दिमाग में खेल में ही कैरियर बनाने का सोच लिया था।
छोटी उम्र में बोल्ट ने अपने गांव के ही एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की और यहीं पर पहली बार उन्होंने Race compitition में पार्टिसिपेट किया और सबसे तेज रनर बने। 12 साल की उम्र तक बोल्ट ने यह तो सोच लिया था कि खेल में उन्हें अपना कैरियर बनाना है लेकिन किस खेल में यह डिसाइड नहीं कर पा रहे थे क्योंकि उन्हें फुटबॉल और क्रिकेट का भी बहुत शौक था। लेकिन उनका यह कंफ्यूजन भी बहुत जल्दी दूर हो गया जब उनके कोच ने क्रिकेट पिच पर बोल्ट के दौड़ने की स्पीड देखी और बोल्ट को सलाह दी कि वह Sprinting में कोशिश करें बोल्ट ने अपने कोच की सलाह मानी और कोच मिल्स से अपने दौड़ की ट्रेनिंग लेना शुरू किया।
और पहली बार जब 15 साल की उम्र में कैरीबियन रीजनल टीम की तरफ से जमैका की तरफ से खेलते हुए 2001 में 400 मीटर और 200 मीटर दौड़ में रजत पदक जीता ।
और फिर 2002 में वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप में 1 गोल्ड के साथ 3 पदक जीते लेकिन इसी बीच में जीवन के कठिन समय से भी गुजरना पड़ा जब बोल्ट को नसों में चोटों की वजह से मई 2004 में घुटनों बोल्ट को ओलंपिक में हार का सामना करना पड़ा और वह कोई भी पदक जीतने में सफल नहीं हो पाए।
लेकिन इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और जी जान से अगले ओलंपिक की तैयारी में लग गए और फिर क्या था 2008 के समर ओलंपिक में 100 मीटर 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में तीन गोल्ड एक ही ओलंपिक में जीत कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया इसके अलावा 2008 से अभी तक के सभी ओलंपिक्स में 200 मीटर में वह वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बना चुके हैं।
अब जानते हैं उसैन बोल्ट कितनी मेहनत करते हैं और अपने काम पर Focused और disciplined कैसे रहते हैं? | Usain bolt work ethics
एक इंटरव्यू में पूछा गया कि जब फाइनल रेस का मौका आता है तब सभी धावक का दिल तेजी से धड़कता है और शरीर में एड्रेनल पंप होता है उसी समय उसैन बोल्ट के दिमाग में क्या चलता है?
बोल्ट कहते हैं कि मैं Random बातों के बारे में सोचने की कोशिश करता हूं कि आज रात में खाना क्या खाऊंगा? आज किस से मिलना है? वगैरह वगैरह… लेकिन जैसे ही रेफरी बोलता है on your marks वैसे ही मेरा पूरा का पूरा फोकस रेस पर lock हो जाता है। बोल्ट खुद कहते हैं कि जब मैं ट्रैक पर जाता हूं तो मुझे लगता है कि मुझे कोई हरा नहीं सकता दोस्तों उसैन बोल्ट की जो मस्त मौला पर्सनैलिटी है वह सिर्फ ऊपर का मुखौटा है।
उसैन बोल्ट कहते हैं कि मेरे कोच का जवाब हमेशा ना होता है मैं कितनी भी अच्छी रेस कर लूं या मैं कितनी भी अच्छी ड्रिल लगा लूं अगर उनसे पूछा जाए कि क्या मेरे टेक्निक अच्छी है? तो उनका जवाब हमेशा होगा नो… शायद कोच का यही काम है लेकिन बोल्ट हमेशा से टॉप एथलीट नहीं थे कोच मिल्स ने बोल्ट के साथ काम करना तब शुरू किया जब वह चोटों से थे और क्रिटिक्स का अंदाजा था कि इस 18 साल के लड़के का इंटरनेशनल करियर दो-तीन साल में खत्म हो जाएगा
15 साल की उम्र में बोल्ट ने 200 मीटर की रेस जीतकर youngest Ever world champion आज से पहले किसी ने भी 15 साल या इससे कम की उम्र में वर्ल्ड चैंपियनशिप नहीं जीती थी फिर 2 साल बाद 17 साल की उम्र में उन्होंने उसी प्रतियोगिताओं में वर्ल्ड जूनियर रिकॉर्ड भी तोड़ा पूरी जमैका को उम्मीद थी कि यह लड़का ओलंपिक्स में गोल्ड मेडल लेकर आएगा ओलंपिक्स लेकिन उसैन बोल्ट 2004 के ओलंपिक्स के पहले ही राउंड में चोट के कारण बाहर हो गए वह कहते हैं कि जिस साल से में प्रोफेशनल प्लेयर बना उसी साल से मुझे बार-बार Injuries हो रही थी असल में बोल्ट को scoliosis था जिसमें spine के बगल में थोड़ा घुमाओ आ जाता है।
बोल्ट कहते हैं कि बचपन में कोई तकलीफ नहीं हुई लेकिन Pro athlete बनने के पहले साल में workload बढ़ गया और इसके बाद injuries होने लगी लेकिन यह बात जमैकन मीडिया को नहीं मालूम थी। सब का अनुमान नही दावा था की ओलंपिक्स में हारने के डर से उसैन बोल्ट ने दर्द का नाटक किया है यह बोल्ट के लिए दूसरी बड़ी सीख थी कि बोलने वाले तो बोलेंगे।
इधर कोच और बोल्ट ने अपना काम शुरू कर दिया था। उन्होंने एक स्पेशलिस्ट थैरेपिस्ट बुलाया गया और साथ में अपने स्पाइन और गर्दन को मजबूत करने के लिए बोल्ट ने और ज्यादा कठिन ट्रेनिंग शुरू कर दी। इसका पहला रिजल्ट मिला दो साल बाद जब 2007 में उन्होंने 2 सिल्वर मेडल जीते। बोल्ट कहते हैं कि कोच मिल्स ने मुझे एक लड़खड़ाते हुए चोटिल एथलीट से चैंपियन बना दिया। लेकिन प्रेशर से बचने का तरीका 15 साल के बोल्ट को खुद ही सीखना पड़ा।
2002 किंग्सटन जमैका में जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप थी। सब कहते थे कि तुम 100 मीटर दौड़ने के लिए नहीं बने हो आज वह 15 साल का दुबला पतला लड़का अपने शहर के सामने दौड़ने से कतरा रहा था। बोल्ट की मां कहती है कि वह इतना डरा हुआ था कि वह रो रहा था। क्योंकि बाकी सारे लड़के बड़े और ताकतवर थे वह अपने शहर के सामने हारना नहीं चाहता था। बोल्ट ने उस दिन अपने डर को काबू करके रेस जीती। बोल्ट कहते हैं कि उस दिन अपने डर को पहचानना मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट था उसके बाद मैंने किसी भी रेस को अपने सिर पर भारी नहीं होने दिया और यही बारीकी भी हमको उनके वर्क एथिक में दिखती है।
बोल्ट कहते हैं effortless performance जैसी कोई चीज नहीं होती जब कई लोग मुझे भागते हुए देखते हैं तो कहते हैं कि आप Sprinting को कितना आसान बनाते हो बिल्कुल effortless. तब बोल्ट कहते हैं कि उस लेवल तक पहुंचने के लिए सब कुछ बहुत कठिन है। हर दिन सुबह शाम Sacrifice है जब आप पूरी दम लगाकर ट्रेनिंग करते हो तो शरीर दर्द से कहता है कि रुक जाओ अब घर चलते हैं। जब सुबह उठते हो तो याद आता है कि आज तो बहुत कठिन ट्रेनिंग है मन करता है कि ना जाऊं और घर पर ही आराम करूँ लेकिन जाना तो है ट्रेनिंग करना रेस से बहुत कठिन है।
उनके कोच उनसे कहते हैं कि कुछ सालों में हमारे पास ट्रैक यानी दौड़ने वाली मुरम नहीं बचेगी क्योंकि यह सब तो तुम अपने पसीने के साथ घर ले जा रहे हो।
एक रिपोर्टर उसैन बोल्ट की प्रैक्टिस देखकर कहता है कि हमने आपको कभी इतने कष्ट में नहीं देखा बोल्ट उसी वक्त कहते हैं आप यही तो असलियत देखने आए थे ना असली काम तो पर्दे के पीछे होता है पर्दे पर तो बस थोड़ी सी झलक दिखती है हम सब कुछ बस उस एक रेस के लिए कर रहे हैं।
रेस में जाकर आप कॉन्फिडेंस नहीं ढूंढ सकते आपको पहले से इसकी तैयारी करनी होगी। मैं रेस में जाकर यह नहीं सोच सकता कि बगल वाला एथलीट मुझे हरा सकता है अगर बगल वाला वर्ल्ड चैंपियन भी है तो आपको अपनी सबसे अच्छी स्पीड दौड़नी होगी। क्या पता कि आज उसका बुरा दिन हो इसीलिए सबसे पहले मेंटली तैयार होना जरूरी है।
बोल्ट कहते हैं कि मैं अपने ऊपर प्रेशर नहीं आने देता आप हमेशा अपने आपको याद दिलाते रहते हो कि आप सब कुछ नहीं जीत सकते कुछ जीतोगे कुछ हारोगे और हर sports ऐसा ही होता है। मेरे कोच ने मुझे सबसे पहले ही सिखाया था कि अगर लंबा जीतना है तो पहले हारना सीखना होगा उनका कहने का मतलब था कि हार को पचाना और उसका दा उठाना सीखो तभी लंबा जीत सकते हो
बोल्ट कहते हैं कि मैंने बहुत सारे एथलीट को देखा है कि जो लोग शुरुआत में जरूरत से ज्यादा करने की कोशिश करते हैं लेकिन ट्रेनिंग पूरी नहीं कर पाते कई सालों में मुझे यह बात समझ में आई है। मेरे कोच कहते थे कि आखरी set (exercise) ज्यादा जरूरी है। असली इंप्रूवमेंट खासकर मेंटल आखिरी set में आता है जब आपकी इच्छा होती है कि अब घर चलें तब आपको मेंटल Barrier के उस पार जाना है इस अवरोध या Barrier को धक्का लगाना ही असली improvement है।
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