जीवन में अच्छी आदतें कैसे अपनाएं | The power of habit book summary in hindi
लेखक चार्ल्स डूहिग ने 100 से भी अधिक एकेडमिक स्टडीज ,300 से भी अधिक वैज्ञानिक और कई हायर रैंक ऑफिसर के इंटरव्यू और 10 से भी अधिक कंपनियों पर किए गए शोधों और कई डॉलर खर्च करने के बाद इन्हें जो ज्ञान मिला उसे इन्होंने द पावर ऑफ हैबिट नाम की किताब में लिख दिया है। किताब में दिया गया है कि कैसे हम अपनी आदतों को बदल कर अपनी जिंदगी बदल सकते हैं कैसे हम अपनी बुरी आदतों को अच्छी आदतों में बदल सकते हैं।
हमारी आदतें क्यों और कैसे बनती है?
इस पर वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारा दिमाग आदतों को इसलिए बनाता है कि उसे कम से कम मेहनत करना पड़े और उससे बची उर्जा का उपयोग किसी और काम में कर सकें या उसे थोड़ा आराम मिल सके। सन 2006 में ड्यूक विश्वविद्यालय के एक शोधकर्ता द्वारा प्रकाशित शोध में बताया गया है कि लोग दिनभर में जितना कार्य करते हैं उनमें से 40% कार्य उनके निर्णय द्वारा नहीं बल्कि उनकी रोजमर्रा की आदतों के द्वारा होते हैं।
जैसे आप हर रोज सुबह अपने दांत साफ करने के लिए किसी रोबोट की तरह ऑटोमेटिक ढंग से पहले टूथब्रश पर टूथपेस्ट लगाते हैं फिर टूथब्रश से अपना मुंह साफ करते हैं इसी तरह कुछ और आदतें जैसे स्कूल ऑफिस के लिए तैयार होना कपड़े पहनना या बच्चों के लिए खाना बनाना आदि यह आदतें ऐसी है जिनके लिए हमें जरा भी सोचना नही होता है और हम ऑटोमैटिक ही यह सब करते हैं।
कुछ अन्य नियमित क्रियाएं जो हम हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में करते हैं। वह कठिन होने के बावजूद भी हमारा शरीर उन्हें अच्छे से कर लेता है। जैसे हर रोज अपनी कार को घर की पार्किंग से बाहर निकालना, जब आपने शुरू शुरू में कार चलाना सीखा था तब घर की पार्किंग हो या बाहर का रास्ता आपको बड़ी सावधानी से कार को निकालना या चलाना होता था यह स्वाभाविक भी था क्योंकि तब आपको कई सारी चीजों पर ध्यान देना होता था।
जैसे गाड़ी को खोलना.. गाड़ी की सीट को सही करना.. गाड़ी के शीशे को ठीक तरह से करना और उसमें देखकर सुनिश्चित करना कि रास्ते में कोई रुकावट तो नहीं है.. ब्रेक पर पैर रखना.. गाड़ी को रिवर्स गियर में डालना.. पहियों को सीधा रखते हुए यह ध्यान रखना कि रास्ते में कोई दूसरी गाड़ी तो नहीं आ रही.. इसके बाद धीरे-धीरे ब्रेक और एक्सीलेटर का संतुलन बनाना और गाड़ी को आगे बढ़ाना।
लेकिन कुछ दिनों के बाद ही आपको इन सब चीजों की आदत पड़ जाती है और आप बिना विचार किए हर रोज अपनी गाड़ी पार्किंग से आराम से निकाल लेते हैं करोड़ों लोग सुबह उठकर यही कठिन कार्य करते हैं और उन्हें उसके लिए जरा भी सोचने की जरूरत नहीं पड़ती।
इस बुक के लेखक कहते मैं करीब 8 साल पहले इराक के बगदाद में समाचार पत्र की रिपोर्टिंग करने के लिए गया वहां मैंने अमेरिकी सैनिकों की गतिविधियां देखी कि सैनिकों के अंदर ऐसी कई आदतें विकसित हो जाती है जो बड़ी सोच समझकर डिजाइन की गई होती हैं। जैसे युद्ध में कैसे सोचना है, आपस में कैसे बात करनी है, और दुश्मन पर कैसे गोलीबारी करनी है।
मुझे इराक आए 2 महीने हो चुके थे वहां मैंने एक छोटे से शहर की खबर सुनी जहां पर एक सेना अधिकारी आदतों में सुधार लाने के लिए कार्यक्रम चला रहा था वह अधिकारी एक मेजर था जिसने वहां हाल ही में हुए दंगों के वीडियोस देखकर एक पैटर्न का पता लगाया था उस मेजर का पूरा जीवन आदतों के निर्माण का मनोविज्ञान समझने में ही गुजरा था।
मेजर बताते हैं कि सेना में जो मैंने सबसे महत्वपूर्ण बात सीखी वह है आदतों को समझना। इससे मेरे दृष्टिकोण में भी बदलाव आया है। जैसे अगर आप रात में जल्दी सोना चाहते हैं और सुबह उठकर तरोताजा महसूस करना चाहते हैं तो आपको अपने सोने और जागने की आदतों पर ध्यान देना होगा इस बात पर गौर करें की सुबह उठते ही ऑटोमेटिक तरीके से आप क्या करते हैं? इसी तरह अगर आप सुबह दौड़ने की आदत विकसित करना चाहते हैं तो ऐसे प्रेरकों को खोजें जो इसे आपका रूटीन बना सकें मैं अपने बच्चों को भी यही सब बताता रहता हूं मैंने और मेरी पत्नी ने भी अपनी शादीशुदा जिंदगी के लिए कई ऐसी आदतें तय कर रखी है जो हमारे रिश्ते को मजबूत बनाती है।
मेजर कहते हैं कि मैं सेना में जाने से पहले एक आम व्यक्ति हुआ करता था वे या तो हमेशा सूरजमुखी के बीज चबाते रहते थे या तंबाकू थूकते रहते थे सेना में आने से पहले उनके पास दो ऑप्शन थे या तो वह टेलीफोन लाइनें ठीक करने का काम करें या फिर ड्रग्स बेचना शुरू कर दें उनके सहपाठियों ने कैरियर के लिए यही विकल्प चुना लेकिन वह सेना में भर्ती हो गए और आज वह 800 सैनिकों के दल के प्रमुख हैं वह कहते हैं यकीन मानिए अगर मुझ जैसा गवार यह सब सीख सकता है तो आप भी सीख सकते हैं वह इस बात पर जोर देकर कहते हैं कि मैं अपने सैनिकों से हमेशा एक ही बात कहता हूं यदि तुम अपने अंदर सही आदतें विकसित कर लो तो दुनिया में ऐसा कुछ नहीं है जिसे तुम हासिल नहीं कर सकते।
आदतों का फंडा – आदतों का विकास किस सिद्धांत पर कार्य करता है
लेखक कहते हैं हमारे दिमाग के अंदर होने वाली प्रक्रिया के तीन स्टेप होते हैं पहला चरण है
1.इशारा (Cue) – इस स्टेप में दिमाग ऑटोमेटिक ढंग से सक्रिय हो जाता है और उसे यह सूचना मिलती है कि कौन सी आदत का उपयोग करना है यह इशारा और संकेत हमें किसी भी चीज को करने के लिए आदत की शुरुआत करता है।
जैसे अगर आप टीवी पर किसी एक्टर को बीयर पीते हुए देखते हैं तो इसे देखकर आपको भी यह पीने का एक इशारा या संकेत मिलता है और अगर आपका कोई दोस्त सिगरेट पीता है तो आपको भी इसी तरह सिगरेट पीने का इशारा मिलता है।
दोस्तों कई कंपनियां भी इसी तरह काम करती हैं पहले वह लोगों के मनोविज्ञान को समझती हैं फिर लोगों को एक इशारा या संकेत देकर अपने प्रोडक्ट सेल करती हैं।
2.अगला स्टेप है; नियमित क्रिया (Routine)
सहज व्यवहार जो शारीरिक मानसिक या भावनात्मक में से कुछ भी हो सकता है।
जब हमें किसी किसी चीज का इशारा मिल जाता है इसके बाद शुरू होती है आदत की दूसरी प्रक्रिया जिसे नियमित क्रिया कहते हैं इशारा तो सिर्फ किसी आदत को शुरू करने का संकेत होता है लेकिन जब हम उस चीज को करना शुरू कर देते हैं तब उसे नियमित क्रिया कहते जैसे बियर को खोल कर पीना और सिगरेट को जलाकर कश लेने की प्रक्रिया नियमित क्रिया (Routine) है
3.अंतिम स्टेप है इनाम (Reward)
जिसमें आपका दिमाग यह निर्णय लेता है कि इस रास्ते को भविष्य के लिए याद रखना है या नहीं।
दोस्तों जब भी हम किसी आदत को पूरा करते है तो हमें कई तरह के इनाम मिलते हैं। हमारी आदतें अच्छी हो या बुरी आदत पूरी होने के बाद हमारे ब्रेन में डोपामिन रिलीज होता है यह डोपामिन हमें खुशी का अहसास कराता है और यह खुशी ही हमारे लिए इनाम की तरह होती है क्योंकि किसी आदत को करने के बाद हमें खुशी महसूस होती है।
समय के साथ इशारा(cue), नियमित क्रिया(Routine) और इनाम(Reward) का रास्ता अधिक से अधिक ऑटोमेटिक बन जाता है। इशारा और इनाम एक साथ मिलकर पूर्वानुमान और इच्छा जगाते हैं फिर आखिरकार आपके घर या आपके घर की पार्किंग में एक आदत का निर्माण होता है।
मस्तिष्क की इच्छा – नई आदतें कैसे विकसित करें
पेप्सोडेंट टूथपेस्ट को बेचने के लिए होपकिंस को ऐसे इशारे की जरूरत थी जिससे ग्राहकों को हर रोज इसका उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। वह कहते हैं मैंने दांतों के स्वास्थ्य से जुड़ी कई किताबें पढ़ी लेकिन इनमें मुझे कुछ खास जानकारी नहीं मिली। इसके बाद मुझे एक किताब मिली जिसमें दांतो में जमे मेल(प्लेक) के बारे में लिखा हुआ था। इसे पढ़कर मुझे एक अच्छा विचार आया मैंने इस टूथपेस्ट को दांतो को चमकाने या उसका आवरण हटाने के रूप में प्रचारित करने का फैसला किया। याने की कैसे दांतो के मेल से निपटा जा सके इससे उन्हें यह बात समझ आ चुकी थी कि दांतो को आवरण(प्लेक) के बारे में ग्राहकों को बता कर इस तरह से इशारा किया जा सकता है जिससे उन्हें उनके अंदर यह आदत विकसित हो सके।
होपकिंस ने इसके लिए जिस इनाम(Reward) की कल्पना की थी वह और भी आकर्षक था। भला दुनिया में ऐसा कौन है जो अपनी सुंदरता बढ़ाना नहीं चाहता कौन नहीं चाहता कि उसकी मुस्कान और सुंदर हो जाए खासकर तब जब आपको इसके लिए सिर्फ पेप्सोडेंट से अपने दांत साफ करने हो।
इस विज्ञापन को जब लोगों तक पहुंचाया गया तब 1 सप्ताह बीत गया कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं मिली दूसरे सप्ताह भी कुछ खास नहीं हुआ। लेकिन जब तीसरा सप्ताह आया तो पेप्सोडेंट की मांग आसमान छूने लगी इसके बाद इतनी ज्यादा मांग बढ़ गई थी कि कंपनी के लिए इसकी समय पर आपूर्ति करना संभव नहीं हो पा रहा था।
बाजार में आने से पहले टूथपेस्ट का प्रयोग केवल 7% लोग करते थे। विज्ञापन आने के बाद इसकी संख्या बढ़कर 65% हो गयी इस सफलता का कारण होपकिंस बताते हैं कि मैंने इंसानी मनोविज्ञान के बारे में सही चीज सीख ली थी यह मनोविज्ञान 2 नियमों पर आधारित है।
पहला एक सहज और स्पष्ट इशारा(cue) ढूंढो
दूसरा इनाम(Rewards) की स्पष्ट व्याख्या करो।
हॉपकिंस कहते हैं अगर यह दो चीजें सही ढंग से की जाए तो जादुई परिणाम मिलते हैं। पेप्सोडेंट का उदाहरण देते हुए हॉपकिन्स ने विज्ञापनों में लोगों को दिखाया की मेल(प्लेक) स्पष्ट और अच्छा इशारा(cue) था वही उसका इनाम(reward) भी बिल्कुल स्पष्ट था सुंदर दांत!
इसी तरह लोगों में हजारों आदतें विकसित की गई लोग व्यायाम को दिनचर्या बनाने में तब सफल होते है जब वह स्पष्ट इशारा और इनाम का चुनाव कर लेते हैं यह इशारा कुछ भी हो सकता है जैसे ऑफिस से घर आने के बाद तुरन्त दौड़ने निकल जाना इसी तरह इनाम भी कुछ भी हो सकता है जैसे एक एक बीयर पीना या फिर सारी फिक्र छोड़ कर कुछ देर टीवी देखना या मनोरंजन करना।