Swami vivekananda 10 life lessons in hindi

स्वामी विवेकानंद के जीवन से मिली सीख | Swami vivekananda 10 life lessons in hindi


Swami vivekananda 10 life lessons in hindi

Swami vivekananda 10 life lessons in hindi/भारतीय युवाओं को प्राचीन समय से लेकर अब तक किसी ने प्रेरित किया होगा तो वह है स्वामी विवेकानंद, विवेकानंद का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि वह आज हर भारतीय के लिए आदर्श है विवेकानंद जी के अनमोल विचार और नियम जो कोई भी युवा अपनाता है वह अपना काम सफलतापूर्वक कर सकता है। और जीवन में वह जो चाहे वह पा सकता है। हम सभी जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद एक शक्तिशाली वक्ता थे वह इतनी बेहतरीन स्पीच देते थे कि उनकी स्पीच सुनकर कोई भी प्रेरित हो जाता था। स्वामी विवेकानंद एक आध्यत्मिक टीचर थे और योगा जैसी टीचिंग को विदेशों में प्रसिद्द बनाने में उनका बहुत बड़ा योगदान है। जहां हिंदू धर्म पहले भारत तक ही सीमित था वहां स्वामी जी जैसे लोगों की वजह से वह देखते ही देखते दुनिया का धर्म बन गया स्वामी विवेकानंद को विज्ञान और अध्यात्म के बारे में बहुत गहरी समझ थी। तो पढ़ते हैं Swami vivekananda 10 life lessons in hindi


Swami vivekananda 10 life lessons in hindi


1.) अपने अंदर से बाहर की तरफ बढ़ें


स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि आपको अपने अंदर से पहले grow करना होगा उससे आपकी बाहरी Growth खुद ब खुद हो जाएगी आपको यह चीज कोई नहीं सिखा सकता कि आपको Spiritual कैसे बनना है आपके अन्तर्मन के अलावा आपके पास दूसरा कोई टीचर नहीं है।


यानी हर बाहरी नॉलेज जैसे बुक्स, टीचर, कहानी यह साइकोलॉजि जैसे ऑनलाइन के माध्यम, यह सब आपको सिर्फ एक रास्ता बता सकते हैं जो आपको इशारा करके यह बता सकते हैं कि आपको किस तरफ़ देखना है और किस तरफ चलना है। लेकिन इस यात्रा की शुरुआत सिर्फ आपको ही करना है। मार्केट में आई नई बुक को पढ़ना है या फिर इंटरनेट पर कुछ ना कुछ देखते रहना, ज्यादातर लोगों की आदत उनकी असली नॉलेज की भूख को दर्शाती है हर इंसान सबसे अच्छी नॉलेज के लिए भूखा है लेकिन लेकिन जब तक वह खुद के अंदर झांकना नहीं सीख लेता है खुद को जानना नहीं सीख लेता, तब तक वह पूरी दुनिया में उस चीज को पाने के लिए भटकता रहेगा जो उसे शांत और स्थिर रहने पर वैसे ही मिल जाती है। इसलिए खुद को शांत रखो और हर चीज को महसूस करो।


2.) हमेशा विनम्र रहें


एक बार स्वामी विवेकानंद इंग्लैंड में अपने मित्र के साथ बैठकर बातचीत कर रहे थे तब उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया कि उनका दोस्त इंग्लिश भाषा बोलते हुए गलती कर रहा और उन्होंने यह बात अपने दोस्त को भी बताई लेकिन उनके दोस्त को यह बात अच्छी नहीं लगी और उनके मित्र ने गुस्से में जवाब दिया कि “इंग्लिश मेरी मातृभाषा है और मैं कैसे गलत हो सकता हूं?”

तब स्वामी विवेकानंद ने अपने दोस्त को शांत होकर जवाब दिया “तुमने तो उसे सुनते सुनते याद किया है लेकिन मैंने तो इसे सीखा है”

इस जवाब को सुनकर उनके दोस्त दंग रह गए


यह चीज हमारे साथ भी अक्सर होती है कि हम दूसरों की छोटी-छोटी बात पर अक्सर गुस्सा हो जाते हैं। तब तो ज्यादा ही जब हमें वह किसी बात के लिए टोकते हैं। इसके बजाय हमें हमेशा शांत और विनम्र रहना चाहिए चाहे हमें कोई कितना भी अपमानित करने की कोशिश कर ले।


3.) हर उस चीज़ को अस्वीकार करें जो आपको कमजोर बनाती है


स्वामी विवेकानंद कहते हैं कोई भी चीज जो आपको Physically, Intellectually और Spiritually वीक बनाती है उसे जहर समझकर रिजेक्ट करो.


कमजोर होना किसी को भी नहीं पसंद है लेकिन कमजोर होना उन लोगों की नियति होती है जो अपने कंफर्ट जोन से बाहर आना नहीं चाहते या फिर वह सच का सामना नहीं करना चाहते हैं।


आजकल बड़े ऑर्गेनाइजेशन का फाइनेंशियल मॉडल कुछ इसी तरह होते हैं कि वह हमें अपने प्रोडक्ट की लत लगवा देते हैं और हमारे उस प्रोडक्ट की तरफ आकर्षित होने पर एक छोटी सी संतुष्टि के अलावा हमे कुछ नहीं देते। हर सोशल मीडिया एप, डेटिंग एप, खाने की चीज, न्यूज़ एप हमें कमजोर बनाने और उनकी ओर आकर्षित करने के लिए डिजाइन किए हुए होते हैं क्योंकि कमजोर लोग कभी भी आवाज नहीं उठाते और अपनों की रक्षा नहीं करते हैं।

इसीलिए इस बात पर विचार करें कि जो भी आप खा रहे हो, सुन रहे हो, या पढ़ रहे हो, या फिर जिस तरह से आप जी रहे हो आपको इस बात का पता होना चाहिए कि वह आप को मजबूत बना रहा है या फिर कमजोर।


4.) अपने अंदर आध्यात्मिक विकास के लिए करुणा ओर दया का भाव रखें।


देश से बाहर जाने से पहले जब स्वामी विवेकानंद अपनी मां से आशीर्वाद लेने गए, तब उनकी मां ने उन्हें जाने से पहले उनसे एक चाकू मंगा जब विवेकानंद जी ने उन्हें चाकू दे दिया फिर उनकी मां ने उनसे कहा कि अब तुम जा सकते हो।

उनकी मां बस यही देखना चाहती थी कि वह किस तरफ से चाकू को उन्हें पकड़ाते हैं। क्योंकि सामान्यता हम हैंडल वाला सिरा खुद पकड़ते हैं और चाकू की नोक वाला सिरा किसी दूसरों को पकड़ा देते हैं। लेकिन विवेकानंद जी ने धार और नोक वाला हिस्सा खुद पकड़ा और लकड़ी वाला हिस्सा अपनी मां की तरफ किया ताकि अगर चोट लगे भी तो उन्हें लगे उनकी मां को ना लगे इसीलिए अब उनकी मां को यह यकीन हो गया था कि उनका बेटा अब Spiritually इतना grow कर गया है कि वह खुद के साथ हुए अच्छे और बुरे की परवाह नहीं करता लेकिन वह दूसरों के बारे में हमेशा दयालु और उनकी परवाह करता है।


यह इसीलिए क्योंकि जब तक किसी इंसान की सोच सीमित होती है तब वह सिर्फ अपनी ही परवाह करता है लेकिन जैसे-जैसे हमारी अवेयरनेस बढ़ती है तब हमें यह समझ आता है कि हर दूसरा इंसान भी हमारी ही तरह है कि अगर हम खुद को बचा कर दूसरों को चोट पहुंचा रहे हैं तो कहीं ना कहीं हम खुद को भी चोट पहुंचा रहे हैं इसीलिए हमेशा हर इंसान के साथ दयालु रहो और उसे भी अपना ही एक हिस्सा समझो।


5.) एक समय में सिर्फ एक काम ही करें


स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि एक समय पर सिर्फ एक ही चीज करो और अपना पूरा ध्यान उसी चीज पर डाल दो और बाकी सब भूल जाओ।


इसी वाक्य के बारे में हमारे कई शास्त्रों में बातें की गई हैं कि अगर हम किसी चीज को सच्चे दिल से पाना चाहते हैं तो हमें अपनी मानसिक, शारीरिक, और भावनात्मक उर्जा को एक ही रास्ते पर लाना होगा। अगर आप अपने लक्ष्य को लेकर ही कंफ्यूज हो आपको यही नहीं पता कि आपको कौन से लक्ष्य को ज्यादा महत्व देना है तो ऐसे में आपको आपका शरीर अलग दिशा में खींचेगा और आपका मन आपको अलग दिशा में खींचेगा।


6.) मदद करो लेकिन बदले में कुछ मत मांगो


विवेकानंद जी कहते हैं कभी भी वापस कुछ मांग या फल की इच्छा मत करो। जो आप दूसरों को दे सकते हो वह दो क्योंकि वह वापस आपके पास जरूर आएगा लेकिन अभी उसके बारे में चिंता मत करो।


अगर आप वहाँ तक पहुंच चुके हैं कि आप दूसरों की मदद करने लगे हैं तो जब भी आप किसी की मदद कर रहे हो तो बदले में आप उनसे कुछ मांगों मत और ना ही उनसे कोई चीज accept करो आपको सिर्फ अच्छे कर्म के बीज बोने हैं और आगे बढ़ जाना है थोड़े समय बाद जब आपके कर्म पकेंगे तब आपको खुद ब खुद अपनी दया भावना के प्रति और इमानदारी के प्रति सराहा जाएगा।


7.) दूसरों से प्यार करने के लिए खुद से प्यार करें


स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं अगर अपनी कई गलतियों के बावजूद भी अगर मैं खुद को प्यार करता हूं तो मैं किसी दूसरे की थोड़ी सी खराब के लिए उनसे नफरत कर कैसे कर सकता हूं?


यानी हर वह इंसान जो दूसरों को बुरा बोलता है और दूसरों पर इल्जाम डालता है वह इंसान असल में इतना ज्यादा Rude इसीलिए होता है क्योंकि वह इंसान खुद को ही पसंद नहीं करता।

हमारी साइकोलॉजि कुछ इसी तरह काम करती है अगर हमें खुद के बारे में कुछ चीजें पसंद नहीं होती तो हम उसे बाहरी दुनिया में ढूंढने लगते हैं इसलिए सबसे पहले खुद को प्यार करना और खुद को एक्सेप्ट करना सीखो।


8.) कभी भी चीजों से डरो मत


स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि आपको कभी डर के नहीं जीना चाहिए। इस बात को सोचकर डरो मत कि आपके साथ क्या होगा या फिर आपको क्या सहना पड़ेगा। 

आप बस खुद किसी पर निर्भर मत रहो और खुद को किसी के साथ अटैच मत करो। जितना ज्यादा आप खुद को चीजों, लोगों और अपने बिलीफ के साथ अटैच होगे उतना ही ज्यादा आप में डर पैदा होगा, कि क्या होगा अगर मेरे हाथ से यह सब चीजें छूट गई तो इसीलिए साहस को अपने साथी बनाओ और खुलकर जिंदगी जीना सीखो।


9.) प्रेम ही आपकी सोच का दायरा बढ़ायेगा, स्वार्थ नहीं


विवेकानंद जी कहते हैं कि हर तरह का प्यार आपकी सोच का दायरा बढ़ाएगा लेकिन हर तरह का स्वार्थीपन तुम्हें और तुम्हारी सोच का दायरा घटएगा इसीलिए प्यार ही जिंदगी का मात्र नियम है जो प्यार करता है वह जीता है और जो स्वार्थी बनता है वह मर मर के जीता है इसीलिए प्यार करो सिर्फ प्यार करने के लिए बिलकुल वैसे ही जैसे सांस लेते हो जिंदा रहने के लिए।


यही वजह है कि कहा जाता है कि Power is unity क्योंकि एक अकेले इंसान के पास सिर्फ एक ही तरह के Opinion, Belief, will power या स्टडी करने के लिए सिर्फ एक ही स्टोरी होती है। लेकिन जब कई लोग साथ में जाते हैं तो एक इंसान की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है और एक दूसरे की मदद करते करते इंसान इतना आगे बढ़ जाता जितना की वह अकेले रहने पर नहीं बढ़ पाता विवेकानंद एक सिंपल सा रूल बताते हैं कि कोई भी निर्णय लेते समय खुद से एक सवाल करो कि वह निर्णय स्वार्थी है या फिर स्वार्थ रहित है। जो चीज सिर्फ आपको खुश करेगी वह चीज गलत है और जो चीज आपको आपके पूरे परिवार को और कम्युनिटी को सुख देगी वह चीजें सही है।


10.) हम खुद ही एक आत्मा हैं


विवेकानंद इस बात पर जोर देते हैं कि हमारे अंदर आत्मा नहीं हम खुद ही एक आत्मा है। हमारा शरीर तो सिर्फ इस पृथ्वी से उधार लिया गया एक हिस्सा है, और हमारे विचार भी हमारे नहीं है क्योंकि हमारे अंदर आए हुए विचार हमारी आसपास की इंफॉर्मेशन के आधार पर ही हमारे अंदर जाते हैं। जैसे ही हम कोई अलग जानकारी देखने लगते हैं वैसे ही हमारे ख्याल भी बदलने लगते हैं तो अगर हम हमारा शरीर नहीं है हमारे विचार नहीं है तो हम है क्या?


स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि तुम एक आत्मा हो जो हमेशा ही मुक्त और हमेशा ही सुखी रहती है इस बात की गहराई में उतरे और तुम एक मिनट में हर तरह के बंधन से मुक्त हो सकते हो।


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