कैसे स्वामी विवेकानंद ने 700 पेज की किताब 1 घंटे में पढ़ ली थी – Power of mind of swami vivekananda

कैसे स्वामी विवेकानंद ने 700 पेज की किताब 1 घंटे में पढ़ ली थी – Power of mind of swami vivekananda/हमारा दिमाग उतना ज्यादा जटिल नहीं है जितना आप सोचते हैं बल्कि उससे ज्यादा जटिल है हमारे भौतिक शरीर में यह छोटा सा दिमाग अनगिनत संभावनाएं रखता है लेकिन अफसोस यह है कि हम उसकी शक्ति के बारे में नहीं जानते यह दिमाग चीजों को याद रखता है घटनाओं को स्टोर करता है लेकिन हम अपने दिमाग को अलग ही ढंग से इस्तेमाल करते हैं और इसकी क्षमताओं को खो देते हैं!

चलिए बताइए आपको कितने मोबाइल नंबर याद है आज हमारे पास मोबाइल नाम की छोटी सी डिवाइस है हम ज्यादातर मोबाइल नंबर याद नहीं करते बस उन्हें अपने मोबाइल में सेव कर लेते हैं दरअसल आजकल दिमाग कि इस्तेमाल होने वाली चीजें हम टेक्नोलॉजी पर छोड़ देते हैं याद रखने का काम और सब कुछ आज रोबोट और टेक्नोलॉजी करते हैं लेकिन शायद आप नहीं जानते हमारे दिमाग की शक्ति रोबोट टेक्नोलॉजी इन सबसे ज्यादा है क्योंकि इन सब चीजों का आविष्कार ही हमारे दिमाग ने किया है हमारी याददाश्त और मेमोरी कमाल की होती है।

तो चलिए इसके बारे में हम आज एक सच्ची घटना जानते हैं।

कैसे स्वामी विवेकानंद ने 700 पेज की किताब 1 घंटे में पढ़ ली थी - Power of mind of swami vivekananda

Power of mind of swami vivekananda

स्वामी विवेकानंद के बारे में तो आप सभी ने सुना ही होगा और विवेकानंद के बारे में अधिकतर सभी लोग जानते हैं कि उनकी याददाश्त कितनी जबरदस्त थी वह बहुत ही जल्दी पूरी किताब पढ़ लेते थे और वर्ल्ड 2 वर्ड उसे याद भी कर लेते थे कहानी कुछ इस तरह से है की,

यह बात उन दिनों की है जब विवेकानंद देश भ्रमण में थे देश भ्रमण में उनके साथ उनके गुरु भाई भी थे देश भ्रमण के दौरान उन्हें जहां कहीं भी अच्छे ग्रंथ या किताबें मिलती थी वे उन्हें पढ़ना पसंद करते थे किसी भी नई जगह जाने के बाद उनकी सबसे पहली तलाश लाइब्रेरी ही होती थी एक बार की बात है एक जगह एक लाइब्रेरी ने उन्हें बहुत अट्रैक्ट किया तो विवेकानंद जी ने सोचा क्यों ना यहां कुछ दिन रुका जाए उनके गुरु भाई उस पुस्तकालय से उनके लिए संस्कृत और अंग्रेजी की नई नई पुस्तकें ला कर देते थे और विवेकानंद उन किताबों को पढ़कर अगले दिन ही वापस दे देते थे रोज-रोज नई-नई किताबों को लाना और उसे अगले दिन ही वापस कर देना यह देखते हुए उस पुस्तकालय का लाइब्रेरियन काफी हैरान व परेशान हो गया उसने स्वामी जी के गुरु भाई से कहा क्या तुम रोज नई पुस्तकें सिर्फ देखने के लिए ही ले जाते हो? अगर आप सिर्फ देखना ही चाहते हैं तो मैं आपको सारी किताब यहीें दिखा देता हूं आप रोजाना किताबों का इतना वजन उठाते हैं और ले जाते हैं फिर लाकर देते हैं यह शोभा नहीं देता और मुझे भी अच्छा नहीं लगता लाइब्रेरियन की इस बात पर स्वामी जी के गुरु भाई ने लाइब्रेरियन से सीरियसली एक बात कही,

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जैसा आप समझ रहे हैं वैसा कुछ भी नहीं है हमारे गुरु विवेकानंद इन सभी किताबों को बड़ी गंभीरता से पढ़ते हैं उसके बाद ही किताब को वापस किया जाता है, लाइब्रेरियन ने यह बात सुनी और काफी चकित हुआ और कहा यदि ऐसा है तो मैं आपके गुरु स्वामी विवेकानंद जी से मिलना चाहूंगा अगले दिन स्वामी जी की मीटिंग उस लाइब्रेरियन के साथ हुई और स्वामी जी ने कहा महाशय आप हैरान ना हो आपकी लाइब्रेरी से आई हुई सभी किताबों को ना केवल मैंने पढ़ा है बल्कि वह सभी किताबें मुझे मुंह जुबानी याद है इतना कहते ही उन्होंने वापस की हुई कुछ किताब उस लाइब्रेरियन को थमाई और किताब में मौजूदा महत्वपूर्ण कंटेंट उस लाइब्रेरियन को मुंह जुबानी सुना दिया लाइब्रेरियन चकित रह गया फिर लाइब्रेरियन ने उनके तेज दिमाग का रहस्य पूछा तो विवेकानंद बोले कि किसी भी चीज को पूरे फोकस के साथ याद किया जाए तो वह पूरी तरीके से आप की मेमोरी में स्टोर हो जाती है आपका दिमाग चीजों को कभी नहीं भूलता उसके लिए जरूरी है आपको आपके दिमाग की और मन की शक्ति को पहचानना ओर यह शक्ति अभ्यास और ध्यान से आती है और आप तो जानते ही होंगे कि विवेकानंद बहुत ध्यान करते थे उन्हें जब भी समय मिलता था तो वह किताबें पढ़ते थे या बहुत गहरे ध्यान में होते थे!

ऐसी ही एक और दूसरी कहानी है विवेकानंद जी के जीवन की

विवेकानंद जी भारत के पहले ऐसे योगी थे जो अमेरिका गए थे 1893 में, उन दिनों विवेकानंद जी ने एक क्रांति सी ला दी थी। एक बार की बात है स्वामी विवेकानंद अमेरिका से लौटते समय व एक जर्मन फिलॉस्फर के पास मेहमान थे भोजन के बाद वह एक स्टडी रूम में बैठकर चर्चा करने लगे वहीं मेज पर एक साथ 700 पेज की बड़ी किताब रखी हुई थी और वह फिलॉस्फर उस किताब की बहुत ही बढ़ाई कर रहा था, फिर विवेकानंद बोले क्या आप मुझे यह किताब 1 घंटे के लिए दे सकते हैं मैं देखना चाहता हूं ऐसा इस किताब में क्या है फिर वह फिलॉस्फर हंसने लगा, और कहा क्या आप इस किताब को 1 घंटे में पढ़ने वाले हैं? मैं तो इसको कई हफ्ते से पढ़ रहा हूं लेकिन मैं इस किताब को समझ नहीं पा रहा हूं क्योंकि यह बहुत जटिल है और वैसे भी यह किताब तो जर्मन भाषा में है और आपको तो यह भाषा आती भी नहीं है इस 1 घंटे में आप क्या कर सकते हैं?

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फिर विवेकानंद जी ने कहा आप जरा किताब तो दीजिए किताब को देख कर बताता हूं कि क्या कर सकता हूं तो फिर वह किताब उन्हें दे दी गई उन्होंने उस किताब को अपने दोनों हाथों के बीच में पकड़ा और फिर आंखें बंद करके बैठ गए और फिर 1 घंटे बाद किताब को वापस करते हुए स्वामी विवेकानंद जी ने कहा इस किताब में इतना कुछ खास नहीं है, तो उस आदमी को लगा कि विवेकानंद के घमंड की तो हद ही हो गई आपने उस किताब को खोला तक नहीं और आप उस किताब के बारे में कमेंट कर रहे हैं जबकि आपको तो यह भाषा भी नहीं आती, और वह आदमी बुरी तरह से उन से चिढ़ गया यह किस तरह की बकवास है?

फिर विवेकानंद जी बोले कि आप मुझसे किताब के बारे में कुछ भी पूछ लीजिए और मैं आपको वह बताऊंगा, फिर उस आदमी ने पूछा कि पेज नंबर 633 में क्या लिखा है और फिर स्वामी विवेकानंद जी ने किताब में लिखा एक एक शब्द बिल्कुल वैसा ही बता दिया मतलब आप सिर्फ पेज का नंबर बोलिए उस पेज पर लिखी एक एक बात को वह वर्ड टू वार्ड बता देंगे!

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और फिर वह आदमी बहुत ही आश्चर्यचकित हो गया कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है यह तो चमत्कार है आपने किताब खोली तक नहीं फिर यह कैसे हो गया फिर विवेकानंद बोले.., इसीलिए लोग मुझे विवेकानंद कहते हैं विवेक यानी बोध वैसे उनका नाम नरेंद्र था उनके गुरु ही उन्हें विवेकानंद कहते थे क्योंकि उनके बोध की क्षमता ही कुछ ऐसी थी जो कि उनके गुरु ने पहचान ली थी!

तो कुछ इस तरह से थी विवेकानंद जी के दिमाग की क्षमता उनके बोध की शक्ति यह तभी संभव है जब आप अपने दिमाग की क्षमता को पहचान पाए उस पर भरोसा कर पाए आप यह नहीं सोचिए कि सिर्फ विवेकानंद के पास ही यह शक्ति ईश्वर ने दी थी बल्कि हम सब में इस तरह की क्षमता है हम सभी का दिमाग बहुत शक्तिशाली है बस हम जानते नहीं हैं कि उसका इस्तेमाल आखिर कैसे करना चाहिए तो आप भी योगा या ध्यान करते रहिए शायद एक दिन आप भी अपने दिमाग की शक्ति को पहचान पाए और आप भी एक दिन एक साधारण इंसान से असाधारण इंसान बन पाए।

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